उदाहरण के तौर पर, हालाँकि अल्लाह के लिए उच्च उदाहरण है, परन्तु केवल बात समझाने लिए कहा जा सकता है कि जब इंसान इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का प्रयोग करता है और उसे बाहर से निर्देशित करता है, तो वह उस इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के अंदर किसी भी हाल में प्रवेश नही करता।
अगर हम कहें कि अल्लाह तआला ऐसा कर सकता है, इसलिए कि वह हर चीज़ का सामर्थ्य रखता है, तो ऐसे में हमारे लिए यह मानना भी ज़रूरी होगा कि वह एकमात्र पूज्य एवं सृष्टिकर्ता, ऐसे कार्य नहीं करता, जो उसकी शान के अनुरूप न हों। वह इससे बहुत ऊँचा है।
उदाहरण के तौर पर, हालाँकि अल्लाह के लिए उच्च उदाहरण है : कोई भी पुजारी या उच्च धार्मिक पद का व्यक्ति नग्न होकर सार्वजनिक सड़क पर नहीं निकलता है, हालांकि वह ऐसा कर सकता है, लेकिन वह इस सूरत में जनता के सामने नहीं आ सकता, क्योंकि यह व्यवहार उसकी धार्मिक स्थिति के लिए उचित नहीं है।
जैसा कि प्रसिद्ध है कि मानव रचित संविधान में संप्रभुता के अधिकार या बादशाह के अधिकार से छेड़छाड़ करना दूसरे किसी भी अपराध से बढ़कर है। तो बादशाहों के बादशाह के अधिकार के बारे में आपका क्या ख़्याल है? अल्लाह का अपने बन्दों पर अधिकार है कि वे केवल उसी की इबादत करें, जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''अल्लाह का अपने बन्दों पर यह अधिकार है कि वे उसी की इबादत करें और उसके साथ किसी को शरीक (साझी) न करें। और क्या तुम जानते हो कि जब बन्दे ऐसा कर लें, तो अल्लाह पर बन्दों का क्या अधिकार है? (वर्णनकर्ता कहते हैं कि) मैंने कहा : अल्लाह और उसके रसूल बेहतर जानते हैं। आपने कहा : बन्दों का अल्लाह पर अधिकार यह है कि वह उनको यातना न दे।''
हमारे लिए बस इतना समझ लेना काफ़ी है कि हम किसी को कोई उपहार दें और वह किसी और का शुक्रिया अदा करे तथा किसी दूसरे की फ्रशंसा करे। हालाँकि अल्लाह के लिए उच्च उदाहरण है, लेकिन यही हाल बन्दों का उनके सृष्टिकर्ता के साथ है। अल्लाह ने उन्हें इतनी सारी नेमतों से नवाज़ा है कि उनकी कोई गिनती नहीं है और वे अल्लाह को छोड़ दूसरे का धन्यवाद करते हैं। हालाँकि सृष्टिकर्ता हर हाल में बेनियाज़ है और उसे बंदों की प्रशंसा तथा शुक्रिया की ज़रूरत नहीं है।
अल्लाह तआला का पवित्र क़ुरआन की बहुत सारी आयतों में अपने लिए ''हम'' का शब्द प्रयोग करना यह बताता है कि वह एक है, जो सुन्दरता एवं पवित्रता के बहुत सारे गुणों को अपने अंदर समेटे हुए है। इसी प्रकार अरबी भाषा में यह शब्द शक्ति एवं महानता को दर्शाता है। अंग्रेजी भाषा में भी ''हम बादशाह'' कहा जाता है। इस तरह बहुवचन सर्वनाम का प्रयोग बादशाह, सुल्तान और देश के प्रमुख आदि ऐसे व्यक्तियों के लिए किया जाता है, जो बहुत बड़े पद पर बैठे हों। अलबत्ता, क़ुरआन इबादत के मामले में हमेशा केवल एक अल्लाह की इबादत पर जोर देता है।
अल्लाह तआला ने कहा है :
''आप कह दें कि यह तुम्हारे पालनहार की ओर से यह सत्य है ।जो चाहे ईमान लाए एवं जो चाहे इनकार कर दे।'' [28] [सूरा अल-कहफ़ : 29]
सृष्टिकर्ता के लिए यह संभव था कि वह हमें अपने आज्ञापालन एवं इबादत पर मजबूर कर देता, लेकिन मजबूर करने से इन्सान की रचना का अपेक्षित उद्देश्य पूरा नहीं होता।
अल्लाह की हिकमत आदम को पैदा करने और उसे ज्ञान प्रदान करने के माध्यम से प्रदर्शित हुई।
''और उसने आदम को सभी नाम सिखा दिये, फिर उन्हें फ़रिश्तों के समक्ष प्रस्तुत किया और कहा कि मुझे इनके नाम बताओ, यदि तुम सच्चे हो।'' [29] फिर उन्हें विकल्प को चुनने की क्षमता प्रदान की गई।
[सूरा अल-बक़रा : 31]
''और हमने कहा : ऐ आदम! तुम और तुम्हारी पत्नी स्वर्ग में रहो, तथा इसमें से जिस स्थान से चाहो, मन के मुताबिक खाओ, और इस वृक्ष के समीप न जाना, अन्यथा अत्याचारियों में से हो जाओगे।'' [30] फिर उनके लिए तौबा और अल्लाह की ओर लौटने का दरवाज़ा खुला रखा गया, यह देखते हुए कि विकल्प अवश्य ही ग़लती, गुनाह एवं ग़लत रास्ते की ओर ले जाने का कारण बनेगा।
[सूरा अल-बक़रा : 35]
''फिर आदम ने अपने पालनहार से कुछ शब्द सीखे, तो उसने उसे क्षमा कर दिया। वह बड़ा क्षमाशील दयावान् है।'' [31] अल्लाह ने आदम -अलैहिस्सलाम- को धरती पर अपना खलीफ़ा बनाना चाहा।
[सूरा अल-बक़रा : 37]
''और (हे नबी! याद करो) जब आपके पालनहार ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं धरती में एक ख़लीफ़ा बनाने जा रहा हूँ। वे बोले : क्या तू उसमें उसे बनायेग, जो उसमें उपद्रव करेगा तथा रक्त बहायेगा? जबकि हम तेरी प्रशंसा के साथ तेरे गुण और पवित्रता का गान करते हैं! (अल्लाह) ने कहा : जो मैं जानता हूँ, वह तुम नहीं जानते।'' [32] इसलिए इच्छा और चुनने की क्षमता अपने आप में एक वरदान है, अगर इसका सही और सच्चे मार्ग में उपयोग किया जाए। जबकि यह एक अभिशाप है अगर बुरे उद्देश्यों के लिए इसका इस्तेमाल किया जाए।
[सूरा अल-बक़रा : 30]
ज़रूरी है कि इरादा एवं एख़्तियार ख़तरों, फ़ितनों, संघर्ष एवं आत्मा के जिहाद से घिरे हों। यह इंसान के लिए अधिक बड़े दर्जे और सम्मान की बात है, उन (बुरे कर्मों की ओर) झुकने से जो नकली खुशी की तरफ़ ले जाते हैं।
अल्लाह तआला ने कहा है :
''बिना किसी उज़्र (कारण) के बैठे रहने वाले मोमिन और अल्लाह की राह में अपने धनों और प्राणों के साथ जिहाद करने वाले, बराबर नहीं हो सकते। अल्लाह ने अपने धनों तथा प्राणों के साथ जिहाद करने वालों को पद के एतिबार से, जिहाद से बैठे रहने वालों पर प्रधानता प्रदान किया है। जबकि अल्लाह ने सब के साथ भलाई का वादा किया है।तथा अल्लाह ने जिहाद करने वालों को महान प्रतिफल देकर, जिहाद से बैठे रहने वालों पर वरीयता प्रदान किया है।'' [33] प्रतिफल एवं यातना का औचित्य ही क्या है, यदि हमारा अपना कोई एख़्तियार ही न हो, जिसके आधार पर हम बदले के हक़दार हों।
[सूरा अन-निसा : 95]
लेकिन इन सारी बातों के साथ यह भी ज्ञात होना चाहिए कि इंसान को प्राप्त यह एख़्तियार दुनिया में सीमित है। साथ ही अल्लाह हमारे केवल उन कामों का हिसाब लेगा, जिनको करने या न करने का हमारे पास एख़्तियार रहा हो। जैसे हालात एवं परिस्थिति जिनमें हम पले-बढ़े हैं, उनमें हमारा कोई एख्तियार नहीं है। इसी तरह हमने अपने पिताओं को नहीं चुना है और इसी तरह हमारा रंग और शक्ल कैसी हो, इसमें भी हमारा कोई एख़्तियार नहीं है।