हम इंद्रधनुष और मरीचिका देखते हैं, जबकि इनका कोई वजूद नहीं होता। हम गुरुत्वाकर्षण को देखे बिना उसके अस्तित्व को सच मानते हैं, सिर्फ इसलिए कि यह भौतिक विज्ञान द्वारा सिद्ध किया गया है।
अल्लाह तआला ने कहा है :
''उसे निगाहें नहीं पातीं और वह सब निगाहों को पाता है और वही अत्यंत सूक्ष्मदर्शी, सब ख़बर रखने वाला है।'' [22] केवल उदाहरण के तौर और बात को समझने के देखिए कि मनुष्य किसी ऐसी चीज का वर्णन नहीं कर सकता जो भौतिक नहीं हो, जैसे कि ''सोच''। किलो ग्राम में उसका वज़न, सेंटमीटर में उसकी लंबाई, उसकी रासायनिक संरचना, उसका रंग, उसका दबाव और उसकी शक्ल एवं सूरत आदि बयान नहीं की जा सकती।
[सूरा अल-अनआम: 103]
दरअसल बोध को चार प्रकारों में विभाजित किया गया है :
अनुभव पर आधारित बोध : जैसे आप कोई चीज़ अपनी आँख से देखते हैं।
कल्पना पर आधारित बोध : जैसे आप किसी महसूस सूरत की तुलना अपनी पिछली याद या अनुभवों के साथ करें।
विचार पर आधारित बोध : दूसरों की भावनाओं को महसूस करना। जैसा कि आप महसूस करें कि आपका बेटा उदास है।
इन तीनों तरीक़ों में इंसान और जानवर दोनों समान होते हैं।
विवेक पर आधारित बोध : यह केवल मनुष्य की विशेषता है।
नास्तिक लोग बोध के इस प्रकार को निरस्त कर देना चाहते हैं, ताकि इंसान और जानवर बराबर हो जाएं। जबकि विवेक पर आधारित बोध सबसे मज़बूत प्रकार का बोध है, इसलिए कि विवेक के द्वारा ही एहसास की गलतियों को सुधारा जाता है। जैसा कि मैंने पिछले उदाहरण में उल्लेख किया, जब इंसान अपनी आँख से मरीचिका को देखता है, तो विवेक की बारी आती है कि वह अपने मालिक को बताए कि यह केवल मरीचिका है। पानी नहीं है। यह केवल रेत में प्रकाश परावर्तन पड़ने के कारण प्रकट होता है। इसका कोई अस्तित्व नहीं है। उस समय एहसास धोखा खा जाता है और विवेक ही उसे सही मार्ग दिखाता है। नास्तिक लोग विवेक पर आधारित दलील का इंकार करते हैं और भौतिक दलील की माँग करते हैं और इसको ''वैज्ञानिक दलील'' का नाम देते हैं। तो क्या तर्कसंगत और दार्शनिक सबूत भी वैज्ञानिक सबूत नहीं है? अवश्य यह भी वैज्ञानिक सबूत है, लेकिन भौतिक नहीं। आप बस छोटे सूक्ष्म जीवों की कल्पना कर सकते हैं, जिन्हें खुली आँखों से नहीं देखा जा सकता। यदि इन जीवों की बात किसी ऐसे इनसान के सामने रखी जाए जो पाँच सौ साल पहले इस धरती पर जी रहा था, तो उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी। [23] https://www.youtube.com/watch?v=P3InWgcv18A फ़ाज़िल सुलैमान
हालाँकि अक़्ल सृष्टिकर्ता एवं उसके कुछ गुणों का पता लगा सकती है, परन्तु उसकी एक सीमा है। हो सकता है कुछ बातोंं की हिकमत का पता लगा ले और कुछ का नहीं। जैसे कोई भी व्यक्ति किसी भौतिक वैज्ञानी जैसे आइंस्टीन के दिमाग की हिकमत का पता नहीं कर सकता है।
''अल्लाह के लिए उच्च उदाहरण हैं, अल्लाह को पूरे तरीक़े से जान लेने का दावा करना अज्ञानता है। आपको मोटरगाड़ी समुद्र के किनारे तक ले जा सकती है, मगर आपको उसमें चलने के लिए समर्थ नहीं बना सकती। यदि आपसे पूछा जाए कि समुद्र में कितने लीटर पानी है और आप किसी एक संख्या में जवाब दें, तो आप अज्ञान हैं, और यदि कहें कि मुझे नहीं मालूम, तो ज्ञानी हैं। अल्लाह की जानकारी का एक मात्र रास्ता ब्रह्मांड में मौजूद उसकी निशानियाँ तथा क़ुरआन की आयतें हैं।'' [24] शैख़ मुहम्मद रातिब अल-नाबुलसी की बातों की कुछ बातें।
इस्लाम में ज्ञान के स्रोत क़ुरआन, सुन्नत और विद्वानों की सम्मति (इजमा) हैं। जबकि विवेक क़ुरआन एवं सुन्नत, तथा उस सही विवेक से प्रमाणित बात के अधीन है, जो वह्य के विरूद्ध न हो। अल्लाह तआला ने विवेक को इस तरह बनाया है कि वह ब्रह्मांड में मौजूद निशानियों एवं महसूस चीज़ों के द्वारा सही मार्ग तलाश करे, जो वह्य की वास्तविकताओं की गवाही दे, न कि उससे टकराए।
अल्लाह तआला ने कहा है :
''क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह ही उत्पत्ति का आरंभ करता है, फिर उसे दुहरायेगा? निश्चय ये अल्लाह के लिए बहुत आसान है। (हे नबी!) कह दें कि चलो-फिरो धरती में, फिर देखो कि उसने कैसे उतपत्ति का आरंभ किया है? फिर अल्लाह दूसरी बार भी पैदा करेगा। वास्तव में, अल्लाह हर चीज़ का सामर्थ्य रखता।'' [25] ''फिर उसने अपने बन्दे की ओर वह्य की, जो वह्य की।'' [19-20]
[सूरा अल-अंकबूत : 19-20] एक बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो हर चीज़ को समझने की कोशिश करता है, और एक मूर्ख व्यक्ति वह है जो समझता है कि वह हर चीज़ को समझता है।
[सूरा अल-नज्म : 10] ज्ञान के बारे सबसे अच्छी बात यह है कि उसकी कोई सीमा नहीं है। हम ज्ञान के समुद्र में जितनी डुबकी लगाएंगे, उतना ही दूसरे ज्ञान प्राप्त करते जाएँगे। परन्तु हम कभी भी पूरा ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते।
अल्लाह तआला ने कहा है :
“(ऐ नबी!) आप कह दें : यदि सागर मेरे पालनहार की बातें लिखने के लिए स्याही बन जाए, तो निश्चय सागर समाप्त हो जाएगा इससे पहले कि मेरे पालनहार की बातें समाप्त हों, यद्यपि हम उसके बराबर और स्याही ले आएँ।” [27] सृष्टिकर्ता अपनी किसी सृष्टि के आकार में क्यों प्रकट नहीं होता?