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अल्लाह ने इन्सान को क्यों पैदा किया, जबकि वह उससे बेनियाज़ है?

जब इन्सान अपने आपको बहुत अधिक मालदार एवं दानशील पाता है, तो वह अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों को खाने-पीने के लिए बुलाता है।

हमारे यह गुण दरअसल अल्लाह के गुणों का एक छोटा-सा हिस्सा हैं। अल्लाह सृष्टिकर्ता है, उसके सुन्दर एवं प्रताप वाले गुण हैं, वह बड़ा दयालु एवं कृपावान है, वह देने वाला एवं दानशील है। उसने हमें अपनी इबादत के लिए पैदा किया है, ताकि यदि हम निष्ठावान होकर उसकी इबादत करें, उसकी आज्ञा का पालन करें एवं उसके आदेश अनुसार चलें, तो हमपर रहम करे, हमें ख़ुशियाँ प्रदान करे और हमें बहुत कुछ दे। दरअसल इन्सान का हर अच्छा गुण, अल्लाह के गुणों से ही निकला हुआ है।

उसने हम सबको पैदा किया एवं हमें एख़्तियार दिया। अब हमपर है कि हम आज्ञापालन एवं इबादत का मार्ग चुनें या अल्लाह के अस्तित्व का इंकार करके बग़ावत एवं अवज्ञा का रास्ता चुन लें।

अल्लाह तआला ने कहा है :

"मैंने जिन्नों और इन्सानों को मात्र इसी लिए पैदा किया है कि वे केवल मेरी इबादत करें। मैं नहीं चाहता हूँ उनसे कोई जीविका और न चाहता हूँ कि वे मुझे खिलायें। अवश्य अल्लाह ही जीविका दाता, शक्तिशाली, बलवान् है।'' [34] जहाँ तक अल्लाह के अपनी सृष्टि से निस्पृह होने की बात है, तो यह दलील एवं अक़्ल की बुनियाद पर प्रमाणित बातों में से है।

[सूरा अल-ज़ारियात : 56-58]

अल्लाह तआला ने कहा है :

''अल्लाह सारे संसारों से बेपरवाह है।'' [35] जहाँ तक तर्क की बात है, तो सारे संसार का सृष्टिकर्ता, पूर्ण कमाल के गुणों से विशेषित है और पूर्ण कमाल के गुणों में से यह है कि उसे किसी की ज़रूरत न हो, क्योंकि दूसरे की ज़रूरत कमी की निशानी है, जिससे अल्लाह पाक है।

[सूरा अल-अनकबूत : 6]

उसने अन्य प्राणियों के विपरीत इंसान एवं जिन्नात को एख़्तियार की स्वतंत्रता से विशिष्ट बनाया है। वह विशिष्टता यह है कि इंसान केवल अपने इरादे से सारे जहानों के पालनहार का रुख करे एवं निष्ठावान होकर उसकी इबादत करे। इस प्रकार सभी सृष्टियों पर इंसान को प्राथमिकता देने वाली अल्लाह की हिकमत प्राप्त होगी।

सारे जहानों के पालनहार के बारे में जानकारी उसके अच्छे नामों एवं उच्च गुणों की समझ के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है, जिन्हें प्रमुख रूप से दो समूहों में विभाजित किया जा सकता है, जो इस प्रकार हैं :

सुन्दरता पर आधारित नाम (जिन नामों से अल्लाह की सुन्दरता प्रकट होती हो) : हर वह गुण जो रहमत, क्षमा और नरमी का अर्थ प्रदान करे, जैसे रहमान (दयालु), रहीम (कृपावान), रज़्ज़ाक़ (जीविका देने वाला), वहहाब (प्रदान करने वाला), बर्र (एहसान करने वाला) और रऊफ़ (मेहेरबान) आदि।

प्रताप वाले नाम : हर वह गुण जो शक्ति, सामर्थ्य, महानता और डर से संबंधित हो, जैसे अज़ीज़ (संप्रभुता वाला), जब्बार (पराक्रमी), क़ह्हार (सर्वशक्तिमान), क़ाबिज़ (समेटने वाला) और ख़ाफ़िज़ (नीचा करने वाला)।

अल्लाह के गुणों की जानकारी से हम उसकी इबादत उस तरह से कर सकते हैं, जो उसके प्रताप के अनुरूप हो और हम उसे उन चीज़ों से पाक घोषित कर सकते हैं, जो उसकी शान के मुताबिक़ न हों। उसकी रहमत की आशा कर सकते हैं और उसके क्रोध एवं यातना से बच सकते हैं। उसकी इबादत का मतलब है उसके आदेशों का पालन करना, उसकी मना की हुई चीज़ों से बचना, सुधारवाद के मार्ग पर चलना और धरती को आबाद करने का प्रयास करना। इस बुनियाद पर देखा जाए तो दुनिया का यह जीवन इंसानों की परीक्षा और उनके चयन की एक प्रक्रिया है, ताकि अच्छे और बुरे लोगों की पहचान हो सके और अल्लाह अपना डर रखने वालों के दर्ज़े को ऊँचा करे तथा इसके फलस्वरूप वे धरती पर उत्तराधिकारी बनने एवं आख़िरत में जन्नत पाने के हक़दार बन सकें। जबकि बिगाड़ पैदा करने वालों को दुनिया में रुसवाई का सामना हो और उनका ठिकाना जहन्नम की आग हो।

अल्लाह तआला ने कहा है :

''वास्तव में जो कुछ धरती के उपर है, हमने उनको उसके लिए शोभा बनाया है, ताकि लोगों की परीक्षा लें कि उनमें कौन कर्म में अच्छा है।'' [36] अल्लाह के मानव जाति को पैदा करने के दो पहलू हैं :

[सूरा अल-कहफ़ : 7]

एक पहलू इंसान से संबंधित है : इस पहलू को खुले प्रमाणों के साथ क़ुरआन में स्पष्ट कर दिया गया है और वह है जन्नत प्राप्त करने के लिए अल्लाह की इबादत करना।

जबकि दूसरा पहलू सृष्टिकर्ता से संबंधित है। वह दरअसल पैदा करने की हिकमत है। यहाँ हर व्यक्ति को मालूम होना चाहिए कि हिकमत उसके अकेले का मामला है, किसी सृष्टि का नहीं। हमारा ज्ञान सीमित है, जबकि अल्लाह का ज्ञान पूर्ण एवं व्यापक है। अतः इनसान को पैदा करना, मौत देना, दोबारा उठाना, आख़िरत का जीवन यह सब सृष्टि का एक बहुत ही छोटा-सा हिस्सा है और यह उसी का काम है, न कि फ़रिश्तों, इन्सान या किसी और का।

फ़रिश्तों ने आदम (अलैहिस्सलाम) को पैदा करते समय यही सवाल अपने रब से किया था, तो अल्लाह ने उन्हें स्पष्ट उत्तर देते हुए का था :

''और (हे नबी! याद करो) जब आपके पालनहार ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं धरती में एक ख़लीफ़ा बनाने जा रहा हूँ। वे बो ले: क्या तू उसमें उसे बनायेग, जो उसमें उपद्रव करेगा तथा रक्त बहायेगा? जबकि हम तेरी प्रशंसा के साथ तेरे गुण और पवित्रता का गान करते हैं! (अल्लाह) ने कहा: जो मैं जानता हूँ, वह तुम नहीं जानते।'' [37] सूरा अल-बक़रा : 30

फ़रिश्तों के सवाल पर अल्लाह का जवाब कि वह उससे अवगत है, जिससे फ़रिश्ते अवगत नहीं हैं, कई चीज़ों को स्पष्ट करता है : इंसान को पैदा करने की हिकमत अल्लाह के साथ ख़ास है। यह पूर्ण रूप से अल्लाह से संबंधित बात है। किसी भी सृष्टि का इससे कोई संबंध नहीं है। क्योंकि वह : ''जो चाहे करता है।'' [38] और वह "उत्तर दायी नहीं है, अपने कार्य का और सभी (उसके समक्ष) उत्तर दायी हैं।'' [39] मानव जाति को पैदा करने का कारण केवल अल्लाह जानता है। फ़रिश्ते नहीं जानते। फिर जब मामला अल्लाह के पूर्ण ज्ञान से संबंधित है, तो वही इसकी हिकमत को अधिक जानता है और उसकी अनुमति के बिना इस हिकमत को कोई नहीं जान सकता। [सूरा अल-बुरूज : 16] [सूरा अल-अंबिया : 23]