इंसान किसी पूज्य पर ईमान ज़रूर रखता है। चाहे वह ईमान किसी सच्चे माबूद पर रखे या किसी असत्य पूज्य पर। फिर वह उसे पूज्य कहे या कुछ और। उनका यह पूज्य कोई पेड़ भी हो सकता है। आकाश का कोई तारा, कोई औरत, ऑफ़िस का बाॅस या कोई वैज्ञानिक सिद्धांत भी हो सकता है। यह पूज्य उसकी आकांक्षा भी हो सकती है। इंसान का किसी न किसी चीज़ पर ईमान ज़रूरत होता है, जिसका वह अनुसरण करता है, जिसको पवित्र समझता है और जिसके निर्देश अनुसार जीवन बिताता है, बल्कि यदि उसके लिए जान देने की ज़रूरत पड़े तो जान भी दे देता है। हम इसी को इबादत कहते हैं। दरअसल सच्चे माबूद की इबादत इंसान को दूसरे लोगों या समाज की इबादत से मुक्ति प्रदान करती है।
सच्चा पूज्य वही है, जिसने इस ब्रह्मांड को पैदा किया है और असत्य पूज्यों की इबादत इस दावे पर आधारित है कि वे पू्जय हैं। जबकि पूज्य के लिए सृष्टिकर्ता होना अनिवार्य है। फिर उसके सृष्टिकर्ता होने को प्रमाणित इस प्रकार किया जा सकता है कि ब्रह्मांड में उसकी पैदा की हुई चीज़ों को देखा जा सके या पूज्य की ओर से कोई संदेश आए, जो साबित करे कि वह सृष्टिकर्ता है। लेकिन जब इस दावे का कोई प्रमाण न हो, न ब्रह्मांड में उनकी पैदा की हुई चीज़ें देखी जा सकती हों और न खुद उनकी वाणी से इस तरह की बात साबित हो पाती हो, तो निश्चित रूप से ये पूज्य असत्य होंगे।
हम देखते हैं कि इंसान मुस़ीबत के समय एक हस्ती की ओर लौटता है और उसी से उम्मीदें बाँधता हैं। वह एक से अधिक हस्तियों को नहीं पुकारता। विज्ञान ने भी ब्रह्मांड के परिदृश्य और इसकी घटनाओं की पहचान करके ब्रह्मांड में एकल पदार्थ और एकल व्यवस्था को साबित किया है। इसी प्रकार अस्तित्व में समानता और समरूपता के माध्यम से भी इस बात को साबित किया है।
फिर हम एक परिवार के स्तर पर कल्पना करें, जब माँ एवं बाप हमारे भविष्य को लेकर मतभेद करते हैं तो उसका अंजाम यह होता है कि बच्चे बर्बाद हो जाते हैं एवं उनका भविष्य नष्ट हो जाता है। तो फिर दो या दो से अधिक पूज्य यदि ब्रह्मांड का प्रबंध चलाएं तो क्या होगा?
अल्लाह तआला ने कहा है :
"यदि उन दोनों में अल्लाह के सिवा अन्य पूज्य होते, तो निश्चय दोनों की व्यवस्था बिगड़ जाती। अतः पवित्र है अल्लाह, अर्श (सिंहासन) का स्वामी, उन बातों से, जो वे बता रहे हैं।" [1] हम यह भी पाते हैं कि :
[सूरा अल-अंबिया : 22]
यह अनिवार्य है कि सृष्टिकर्ता का अस्तित्व समय, स्थान और ऊर्जा के अस्तित्व से पहले से हो। इस आधार पर, प्रकृति ब्रह्मांड के निर्माण का कारण नहीं हो सकती। क्योंकि प्रकृति स्वयं समय, स्थान और ऊर्जा से बनी है। फलस्वरूप यह अनिवार्य हो जाता है कि वह कारण प्रकृति के अस्तित्व से पहले से अस्तित्व में रहा हो।
यह ज़रूरी है कि सृष्टिकर्ता शक्तिशाली हो और उसका प्रभाव हर चीज पर मौजूद हो।
यह ज़रूरी है कि उसी का आदेश चले, ताकि वह सृष्टि के आरंभ का आदेश जारी कर सके।
यह ज़रूरी है कि उसके पास हर चीज़ का पूर्ण ज्ञान हो।
यह ज़रूरी है कि वह अकेला एवं एक हो। यह उचित नहीं है कि किसी को पैदा करने के लिए कोई दूसरा भी उसके साथ शामिल हो। यह भी उचित नहीं है कि वह अपनी सृष्टियों में से किसी की शक्ल में प्रकट हो। उसे किसी भी स्थिति में पत्नी या बच्चे की आवश्यकता न हो। क्योंकि उसे पूर्णता के सारे गुणों से विशेषित होना चाहिए।
यह ज़रूरी है कि वह तत्वज्ञ हो और जो भी करे किसी विशेष उद्देश्य से करे।
यह ज़रूरी है कि वह न्याय करने वाला हो। वह अपने न्याय के आधार पर पुरस्कृत भी करे और दंडित भी करे। मानव जाति के साथ उसका संपर्क रहे। वह पूज्य नहीं होता अगर लोगों को पैदा करके छोड़ देता। यही कारण है कि वह रसूलों को भेजकर उनके द्वारा लोगों को रास्ता दिखाता है और जीने का तरीक़ा बताता है। जो इस रास्ते पर चलेगा, वह बदले का हक़दार होगा और जो इस रास्ते से भटकेगा, वह दंड पाएगा।