अल्लाह तआला ने कहा है :
''तथा धरती में न कोई चलने वाला है तथा न कोई उड़ने वाला, जो अपने दो पंखों से उड़ता है, परंतु तुम्हारी जैसी जातियाँ हैं। हमने पुस्तक में किसी चीज़ की कमी नहीं छोड़ी। फिर वे अपने पालनहार की ओर एकत्र किए जाएँगे।'' [253] [सूरा अल-अनआम : 38]
अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है : ''एक औरत को एक बिल्ली के कारण यातना दी गई, जिसे उसने बाँधकर रखा था, यहाँ तक कि वह मर गई। अतः वह उसके कारण जहन्नम में गई। जब उसने उसे बाँधकर रखा, तो न कुछ खाने को दिया, न पीने को दिया और न ही आज़ाद छोड़ा कि वह स्वयं धरती के कीड़े-मकोड़े खा सकती।'' [254] [सहीह बुख़ारी तथा सहीह मुस्लिम]
अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है : "एक आदमी ने एक कुत्ते को देखा कि वह प्यास के मारे (शबनम से भीगी) ज़मीन को चाट रहा है। यह देख उस आदमी ने अपने मोज़े को उतारकर (और उसमें पानी भरकर) उस कुत्ते को पिलाया और उसकी प्यास बुझा दी। इसपर अल्लाह ने उसका धन्यवाद किया और उसको जन्नत में प्रवेश कराया।" [255] (इसे इमाम बुखारी एवं इमाम मुस्लिम ने रिवायत किया है।)
अल्लाह तआला ने कहा है :
''तथा धरती में उसके सुधार के पश्चात् बिगाड़ न पैदा करो, और उसे भय और लोभ के साथ पुकारो। निःसंदेह अल्लाह की दया अच्छे कर्म करने वालों के क़रीब है।'' [256] [सूरा अल-आराफ़ : 56]
“जल और थल में लोगों के हाथों की कमाई के कारण बिगाड़ फैल गया है, ताकि वह (अल्लाह) उन्हें उनके कुछ कर्मों का मज़ा चखाए, ताकि वे बाज़ आ जाएँ।” [257] [सूरा अल-रूम : 41]
''तथा जब वह वापस जाता है, तो धरती में दौड़-धूप करता है ताकि उसमें उपद्रव फैलाए तथा खेती और नस्ल (पशुओं) का विनाश करे और अल्लाह उपद्रव को पसंद नहीं करता।'' [258] [सूरा अल-बक़रा : 205]
''और धरती में आपस में मिले हुए विभिन्न खंड हैं, तथा अंगूरों के बाग़, खेती और खजूर के पेड़ हैं, कई तनों वाले और एक तने वाले, जो एक ही जल से सींचे जाते हैं, और हम उनमें से कुछ को स्वाद आदि में कुछ से बढ़ा देते हैं। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो सूझ-बूझ रखते हैं।'' [259] [सूरा अल-रअ्द : 4]
इस्लाम हमें सिखाता है कि सामाजिक कर्तव्य प्यार, दया और दूसरों के प्रति सम्मान पर आधारित होने चाहिएँ।
इस्लाम ने समाज को जोड़ने वाले सभी रिश्तों के आधार, मानदंड एवं नियम बनाए हैं और सभी रिश्तों के अधिकार तथा कर्तव्य तय किए हैं।
अल्लाह तआला ने कहा है :
''तथा अल्लाह की इबादत करो और किसी चीज़ को उसका साझी न बनाओ तथा माता-पिता, रिश्तेदारों, अनाथों, निर्धनों, नातेदार पड़ोसी, अपरिचित पड़ोसी, साथ रहने वाले साथी, यात्री और अपने दास-दासियों के साथ अच्छा व्यवहार करो। निःसंदेह अल्लाह उससे प्रेम नहीं करता, जो इतराने वाला, डींगें मारने वाला हो।'' [260] [सूरा अल-निसा : 36]
''तथा उनके साथ भली-भाँति जीवन व्यतीत करो। फिर यदि तुम उन्हें नापसंद करो, तो संभव है कि तुम किसी चीज़ को नापसंद करो और अल्लाह उसमें बहुत ही भलाई रख दे।'' [261] [सूरा अल-निसा : 19]
''ऐ ईमान वालो! जब तुमसे कहा जाए कि सभाओं में जगह कुशादा कर दो, तो कुशादा कर दिया करो। अल्लाह तुम्हारे लिए विस्तार पैदा करेगा। तथा जब कहा जाए कि उठ जाओ, तो उठ जाया करो। अल्लाह तुममें से उन लोगों के दर्जे ऊँचे[8] कर देगा, जो ईमान लाए तथा जिन्हें ज्ञान प्रदान किया गया है। तथा तुम जो कुछ करते हो, अल्लाह उससे भली-भाँति अवगत है।'' [262] [सूला अल-मुजादला : 11]
इस्लाम अनाथ के लालन-पालन करने की प्रेरणा देता है और अनाथ का लालन-पालन करने वाले से आग्रह करता है कि वह अनाथ के साथ वैसा ही व्यवहार करे जैसा वह अपने बच्चों के साथ करता है। परन्तु अनाथ का अपने असली परिवार को जानने का अधिकार सुरक्षित रखता है, ताकि उसका अपने बाप से विरासत पाने का अधिकार सुरक्षित रहे और वंश मिश्रित न हो।
एक पश्चिमी लड़की की कहानी, जिसे तीस साल बाद अचानक पता चला कि वह एक गोद ली हुई बेटी है, तो उसने आत्महत्या कर ली। यह कहानी गोद लेने के क़ानून की ख़राबी का सबसे बड़ा प्रमाण है। यदि वे उसे बचपन से ही बता देते, तो यह उसपर दया करना होता और उसे अपने परिवार को ढूँढ़ने का अवसर प्राप्त होता।
अल्लाह तआला ने कहा है :
''तो तुम भी अनाथ पर सख़्ती न किया करो।'' [263] [सूरा अल-ज़ुहा : 9]
''दुनिया और आख़िरत के बारे में। और वे आपसे अनाथों के विषय में पूछते हैं। (उनसे) कह दीजिए कि उनके लिए सुधार करते रहना बेहतर है। यदि तुम उन्हें अपने साथ मिलाकर रखो, तो वे तुम्हारे भाई हैं और अल्लाह बिगाड़ने वाले को सुधारने वाले से जानता है। और यदि अल्लाह चाहता, तो तुम्हें अवश्य कष्ट में डाल देता। निःसंदेह अल्लाह सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।'' [264] [सूरा अल-बक़रा : 220]
''और जब (विरासत के) बंटवारे के समय (गैर-वारिस) रिश्तेदार, अनाथ और निर्धन उपस्थित हों, तो उसमें से थोड़ा बहुत उन्हें भी दे दो और उनसे भली बात कहो।'' [265] [सूरा अल-निसा : 8]