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इस्लाम में न (किसी की अकारण) हानि करने की अनुमति है, न बदले में हानि करने की अनुमति है :

इस्लाम में लाल और सफेद मांस खाने की अनुमति क्यों दी गई है?

मांस प्रोटीन का मूल स्रोत है। इसी तरह इन्सान के कुछ दाँत चिपटे और कुछ नुकीले होते हैं। ये दांत मांस चबाने और पीसने के काम आते हैं। अल्लाह ने मनुष्य को पौधों और जानवरों को खाने के लिए उपयुक्त दांत दिए हैं तथा पौधों और पशुओं से प्राप्त खाद्य पदार्थों को पचाने के लिए उपयुक्त पाचन तंत्र प्रदान किया है, जो जानवरों का खाना हलाल होने की दलील है।

अल्लाह तआला ने कहा है :

''तुम्हारे लिए चौपाए जानवर (मवेशी) हलाल किए गए हैं।'' [266] [सूरा अल-माइदा : 1]

पवित्र क़ुरआन में खाद्य पदार्थों के संबंध में कुछ नियम बताए गए हैं :

''(ऐ नबी!) आप कह दें कि मेरी ओर जो वह़्य (प्रकाशना) की गई है, उसमें मैं किसी खाने वाले पर, कोई चीज़ जो वह खाना चाहे, हराम नहीं पाता, सिवाय इसके कि मुरदार हो या बहता हुआ रक्त हो या सूअर का मांस हो; क्योंकि वह निश्चय ही नापाक है, या अवैध हो, जिसे अल्लाह के सिवा दूसरे के नाम पर ज़बह किया गया हो। परंतु जो विवश हो जाए (तो वह खा सकता है) यदि वह विद्रोही तथा सीमा लाँघने वाला न हो। निःसंदेह आपका पालनहार अति क्षमा करने वाला, अत्यंत दयावान् है।'' [267] [सूरा अल-अनआम : 145]

''तुमपर ह़राम किया गया है मुर्दार, (बहता हुआ) रक्त, सूअर का माँस और वह जिसपर (ज़बह करते समय) अल्लाह के अलावा का नाम पुकारा जाए, तथा गला घुटने वाला जानवर, और जिसे चोट लगी हो, तथा गिरने वाला और जिसे सींग लगा हो और जिसे दरिंदे ने खाया हो, परंतु जो तुम (इनमें से) ज़बह कर लो। और जो थानों पर ज़बह किया गया हो और यह कि तुम तीरों के साथ भाग्य मालूम करो। यह सब (अल्लाह की) अवज्ञा है।'' [268] [सूरा अल-माइदा : 3]

एक और जगह वह कहता है :

''खाओ, पियो और फ़िज़ूलखर्ची न करो। बेशक वह (अल्लाह) फ़िज़ूलखर्ची करने वाले को पसंद नहीं करता है।'' [269] [सूरा अल-आराफ़ : 31]

इब्न-ए-क़य्यिम -उनपर अल्लाह की कृपा हो- कहते हैं : ''अल्लाह ने अपने बन्दों को निर्देश दिया है कि वे उतना ही खाएँ और पिएँ कि जो शरीर को सहारा दे और उतनी ही मात्रा में तथा वैसा ही भोजन करें, जिससे शरीर को लाभ पहुँचता हो। जब इससे अधिक हो जाए, तो वह अपव्यय है। यह दोनों ही स्वस्थ के लिए हानिकारक हैं और बीमारी को निमंत्रण देने वाले हैं। अर्थात खाना-पीना छोड़ देना या ज़रूरत से ज्यादा खाना। स्वस्थ की सुरक्षा इन्हीं दो बातों में है।'' (ज़ादुल मआद : 4/213)

और अल्लाह तआला ने हमारे नबी मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के विषय में फ़रमाया है : “वह उनके लिए पवित्र वस्तुओं को हलाल करता है तथा उनपर गंदी चीज़ों को हराम करता है।” [271] दूसरी जगह अल्लाह तआला ने फ़रमाया है : ''वे लोग आपसे प्रश्न करते हैं कि उनके लिए क्या हलाल किए गए हैं, तो आप कह दें कि उनके लिए अच्छी चीज़ों को हलाल किया गया है।'' [272] [सूरा अल-आराफ़ : 157] [सूरा अल-माइदा : 4]

अतः हर अच्छी चीज़ हलाल एवं हर मलीन (गंदी) चीज़ हराम है।

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बता दिया है कि मोमिन को कैसे और कितना खाना एवं पीना चाहिए। फरमाया है: ''किसी आदमी ने अपने पेट से बुरा बर्तन कोई नहीं भरा। आदम की संतान के लिए खाने के कुछेक लुक़मे काफ़ी हैं, जो उसकी पीठ को सीधा रखें। अगर अधिक खाना ज़रूरी हो तो पेट का एक तिहाई भाग खाने के लिए, एक तिहाई भाग पीने के लिए और एक तिहाई भाग सांस लेने के लिए हो।'' [273] [इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।]

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक अन्य अवसर पर फ़रमाया है : ''न (किसी की अकारण) हानि करना है, न बदले में हानि करना है।'' [274] [इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है।]

क्या इस्लाम में जानवरों को ज़बह करने का तरीक़ा अमानवीय नहीं है?

जानवर को ज़बह करने का इस्लामी तरीक़ा, जिसमें जानवर के गले और अन्ननली को तेज चाकू से काट दिया जाता है, बिजली का झटका देकर मारने तथा दम घोंटकर मारने से अधिक दयापूर्ण तरीक़ा है। क्योंकि मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह बंद हो जाने मात्र से पशु को दर्द महसूस होना बंद हो जाता है। जानवर को ज़बह करते समय उसका उठ खड़ा होना दर्द के कारण नहीं, बल्कि रक्त के तेज प्रवाह के कारण है। जिससे जानवर का रक्त आसानी के साथ बाहर निकल जाता है। जबकि दूसरी पद्धतियों में रक्त अंदर रुका रह जाता है, जिसके कारण उसका मांस हानिकारक हो जाता है।

अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है : ''अल्लाह तआला ने हर चीज़ में अच्छे बरताव को अनिवार्य किया है। अतः, जब तुम क़त्ल करो तो अच्छे अंदाज़ में क़त्ल करो, और जब ज़बह करो तो अच्छे अंदाज़ में ज़बह करो। तुम अपनी छुरी को तेज़ कर लो और अपने ज़बीहा- ज़बह किए जाने वाले जानवर- को आराम पहुँचाओ।'' [275] [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।]