Applicable Translations English Español ગુજરાતી සිංහල தமிழ் 中文 Русский عربي

क्या इस्लाम एक अतिवादी धर्म है?

अतिवाद, कठोरता और असहिष्णुता यह ऐसे गुण हैं, जिनसे सच्चे धर्म ने मूल रूप से मना किया है। पवित्र क़ुरआन ने कई आयतों में व्यवहार में दया और करुणा को अपनाने और क्षमा और सहिष्णुता के सिद्धांत पर चलने का आह्वान किया है।

अल्लाह तआला ने कहा है :

''अल्लाह की दया के कारण (ऐ नबी!) आप उनके लिए सरल स्वभाव के हैं। और यदि आप प्रखर स्वभाव और कठोर हृदय के होते, तो वे आपके पास से छट जाते। अतः आप उन्हें माफ़ कर दें और उनके लिए क्षमा याचना करें। तथा उनसे मामलों में परामर्श करें। फिर जब आप दृढ़ संकल्प कर लें, तो अल्लाह पर भरोसा करें। निःसंदेह अल्लाह भरोसा करने वालों को पसंद करता है।'' [194] [सूरा आल-ए-इमरान : 159]

''(ऐ नबी!) आप उन्हें अपने पालनहार के मार्ग (इस्लाम) की ओर हिकमत तथा सदुपदेश के साथ बुलाएँ और उनसे ऐसे ढंग से वाद-विवाद करें, जो सबसे उत्तम है। निःसंदेह आपका पालनहार उसे सबसे अधिक जानने वाला है, जो उसके मार्ग से भटक गया और वही सीधे मार्ग पर चलने वालों को भी अधिक जानने वाला है।'' [195] [सूरा अल-नह़्ल : 125]

धर्म में असल हलाल है, सिवाय कुछ गिने चुने हराम चीज़ों के, जिनका क़ुरआन में स्पष्ट उल्लेख हुआ है, जिनसे कोई असहमत नहीं है।

अल्लाह तआला ने कहा है :

''ऐ आदम की संतान! प्रत्येक नमाज़ के समय अपनी शोभा धारण करो। तथा खाओ और पियो और हद से आगे न बढ़ो। निःसंदेह वह हद से आगे बढ़ने वालों से प्रेम नहीं करता। (ऐ नबी!) कह दें : किसने अल्लाह की उस शोभा को, जिसे उसने अपने बंदों के लिए पैदा किया है तथा खाने-पीने की पवित्र चीज़ों को हराम किया है? आप कह दें : ये चीज़ें सांसारिक जीवन में (भी) ईमान वालों के लिए हैं, जबकि क़ियामत के दिन केवल उन्हीं के लिए विशिष्ट होंगी। इसी तरह, हम निशानियों को उन लोगों के लिए खोल-खोलकर बयान करते हैं, जो जानते हैं। (ऐ नबी!) आप कह दें कि मेरे पालनहार ने तो केवल खुले एवं छिपे अश्लील कर्मों को तथा पाप एवं नाहक़ अत्याचार को हराम किया है, तथा इस बात को कि तुम उसे अल्लाह का साझी बनाओ, जिस (के साझी होने) का कोई प्रमाण उसने नहीं उतारा है तथा यह कि तुम अल्लाह पर ऐसी बात कहो, जो तुम नहीं जानते।'' [196] [सूरा अल-आराफ़ : 31-33]

धर्म ने अतिवाद, सख़्ती और बिना शर्ई प्रमाण के किसी चीज़ को वर्जित करने को शैतानी कार्य कहा है तथा इससे धर्म का कोई संबंध नहीं है।

अल्लाह तआला ने कहा है :

“ऐ लोगो! उन चीज़ों में से खाओ जो धरती में ह़लाल, पाकीज़ा हैं और शैतान के पदचिह्नों का अनुसरण न करो। निःसंदेह वह तुम्हारा खुला शत्रु है। वह तो तुम्हें बुराई और निर्लज्जता ही का आदेश देता है और यह कि तुम अल्लाह पर वह बात कहो, जो तुम नहीं जानते।” [197] [सूरा अल-बक़रा : 168,169]

''और मैं उन्हें अवश्य पथभ्रष्ट करूँगा, और उन्हें अवश्य आशाएँ दिलाऊँगा और उन्हें अवश्य आदेश दूँगा तो वे पशुओं के कान चीरेंगे तथा निश्चय उन्हें आदेश दूँगा, तो वे अवश्य अल्लाह की रचना में परिवर्तन करेंगे। तथा जो अल्लाह को छोड़कर शैतान को अपना मित्र बना ले, वह निश्चय खुले घाटे में पड़ गया।” [सूरा अल-निसा : 119]