नबी वह है जिसकी ओर वह्य (प्रकाशन) भेजी जाती है, परन्तु वह कोई नया संदेश या कार्यप्रणाली लेकर नहीं आता, जबकि रसूल वह है जिसे अल्लाह, उसके समुदाय के अनुरूप नई कार्यप्रणाली एवं शरीयत देकर भेजता है। उदाहरण स्वरूप, तौरात मूसा -अलैहिस्सलाम- पर, इंजील ईसा -अलैहिस्सलाम- पर, ज़बूर दाऊद -अलैहिस्सलाम- पर, स़हीफ़े इब्राहीम -अलैहिस्सलाम- पर तथा क़ुरआन मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- पर उतरे।
मानव के लिए जो उपयुक्त हो सकता है, वह उन्हीं की तरह मानव ही हो सकता है, जो उन्हीं की भाषा में उनसे बात करे और उनके लिए आदर्श हो। यदि उनकी ओर किसी फ़रिश्ते को रसूल बनाकर भेज जाता और वह कोई मुश्किल काम करता, तो लोग कहते कि फ़रिश्ता जो कर सकता है, हम कर नहीं सकते।
अल्लाह तआला ने कहा है :
''(हे नबी!) आप कह दें कि यदि धरती में फ़रिश्ते निश्चिंत होकर चलते-फिरते होते, तो हम अवश्य उनपर आकाश से कोई फ़रिश्ता रसूल बनाकर उतारते।'' [174] [सूरा अल-इसरा : 95]
''और यदि हम उसे फ़रिश्ता बनाते, तो निश्चय उसे आदमी (के रूप में) बनाते और अवश्य उनपर वही संदेह डाल देते, जिस संदेह में वे (अब) पड़े हुए हैं।" [175] [सूरा अल-अन्आम : 9]
वह्य के माध्यम से सृष्टिकर्ता के सृष्टि से संबंध साधने के कुछ प्रमाणों इस प्रकार हैं :
1- हिकमत (तत्वज्ञान) : मिसाल के तौर पर देखें कि जब इंसान कोई घर बनाता है और फिर उससे खुद फ़ायदा उठाए बिना या अपनी औलाद या किसी और को फ़ायदा उठाने दिए बिना यूँ ही छोड़ देता है,तो स्वभाविक रूप से हम उसे अविवेकी या नासमझ कहते हैं। इसलिए यह स्पष्ट है कि ब्रह्मांड को बनाने और आकाशों और धरती के बीच की सारी चीज़ों को मनुष्य के लिए उपयोगी बनाने की कोई न कोई हिकमत एवं उद्देश्य ज़रूर है।
2- प्रकृति या स्वभाव : मानव मानस के भीतर अपनी उत्पत्ति, अपने अस्तित्व के स्रोत और अपने अस्तित्व के उद्देश्य को जानने के लिए एक मजबूत जन्मजात प्रेरणा होती है। मानव प्रकृति हमेशा उसे उस शक्ति की खोज करने के लिए प्रेरित करती है, जिसने उसे अस्तित्व प्रदान किया है। मगर इंसान अकेला अपने सृष्टिकर्ता के गुणों, अपने अस्तित्व के उद्देश्य एवं अपने अंजाम की खोज नहीं कर सकता है। इसके लिए एक ग़ैबी शक्ति के हस्तक्षेप की ज़रूरत होती है, जो यह काम रसूलों को भेजकर करती है और हमारे लिए जीवन के राज़ों को खोलती है।
इसलिए हम पाते हैं कि बहुत-से लोगों ने आकाशीय संदेशों के माध्यम से अपना रास्ता खोज लिया है, जबकि बहुत-से लोग तथ्य की तलाश में अभी भी भटक रहे हैं और उनकी सोच की उड़ान सांसारिक भौतिक प्रतीकों तक सीमित होकर रह गई है।
3- नैतिकता : यदि हमें पानी की ज़रूरत हो, तो यह पानी के होने का प्रमाण है, पूर्व इसके कि हम उसके अस्तित्व को जानें। इसी प्रकार न्याय के प्रति हमारी उत्सुकता न्यायकर्ता के होने का प्रमाण है।
जो इंसान इस जीवन में बहुत सारी कमियाँ तथा लोगों को एक-दूसरे पर अत्याचार करते हुए देखता है, वह इस बात से संतुष्ट नहीं हो सकता कि यह जीवन इस तरह समाप्त हो जाए कि ज़ालिम को कोई सज़ा न मिले और मज़लूमों के अधिकार नष्ट हो जाएँ। बल्कि इन्सान को जब दोबारा जीवित होकर उठने, हिसाब-किताब और आख़िरत के जीवन के बारे में बताया जाता है, तो उसे राहत और इत्मीनान का एहसास होता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जिस इन्सान से उसके कर्मों का हिसाब लिया जाना है, उसे रास्ता दिखाए, निर्देश दिए, प्रेरित किए तथा चेतावनी दिए बिना छोड़ दिया जाए और यही तो धर्म की भूमिका है।
साथ ही, वर्तमान आकाशीय धर्मों का अस्तित्व, जिनके अनुयायी अपने स्रोत की दिव्यता में विश्वास करते हैं, सृष्टिकर्ता के मनुष्यों के साथ संचार का प्रत्यक्ष प्रमाण है। भले ही नास्तिक सारे संसारों के रब के द्वारा रसूलों एवं आकाशीय पुस्तकों के भेजे जाने का इनकार करें, परन्तु इनका अस्तित्व और बाक़ी रहना इस तथ्य का पर्याप्त प्रमाण है कि मनुष्य की परम इच्छा है कि वह पूज्य के साथ संवाद करे और अपने अंदर मौजूद स्वाभाविक ख़ालीपन को दूर करे।