जीवन का मुख्य उद्देश्य सुख की अस्थायी अनुभूति का आनंद लेना नहीं, बल्कि अल्लाह को जानकर और उसकी आराधना करके गहरी आंतरिक शांति प्राप्त करना है।
इस लक्ष्य को प्राप्त करना शाश्वत आनंद और सच्चे सुख की ओर ले जाएगा। अतः, जब यह हमारा प्राथमिक लक्ष्य है, तो इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसी भी समस्या या परेशानी का सामना करना आसान होगा।
आएँ किसी ऐसे व्यक्ति की कल्पना करें, जिसने कभी किसी पीड़ा या दर्द का अनुभव नहीं किया है। वह व्यक्ति, अपने विलासितापूर्ण जीवन के कारण, अल्लाह को भूल गया है और इस प्रकार वह वह कार्य करने में विफल रहा जिसके लिए उसे बनाया गया था। इस व्यक्ति की तुलना किसी ऐसे व्यक्ति से करें, जिसके कष्ट और पीड़ा के अनुभवों ने उसे अल्लाह तक पहुँचाया है और उसने जीवन में अपने उद्देश्य को प्राप्त कर लिया है। इस्लामी शिक्षाओं के दृष्टिकोण से, वह व्यक्ति जिसकी पीड़ा उसे अल्लाह की ओर ले गई, उस व्यक्ति से बेहतर है, जिसने कभी दुख नहीं उठाया और जिसके आनंदों ने उसे अल्लाह से दूर कर दिया।
प्रत्येक मनुष्य इस जीवन में किसी लक्ष्य या उद्देश्य को प्राप्त करना चाहता है और लक्ष्य अक्सर उसके अंदर मौजूद विश्वास पर आधारित होता है। जिस चीज़ को हम धर्म में पाते हैं लेकिन विज्ञान में नहीं पाते, वह वह कारण या औचित्य है, जिसके लिए मनुष्य प्रयास करता है।
धर्म उस कारण को बताता और स्पष्ट करता है, जिसके लिए मनुष्य की सृष्टि हुई है और जीवन अस्तित्व में आया है, जबकि विज्ञान एक साधन है और इसके पास इरादे या उद्देश्य की कोई परिभाषा नहीं है।
धर्म की ओर लौटते समय एक व्यक्ति को जिस चीज़ से सबसे ज़्यादा डर लगता है, वह है जीवन के सुखों से वंचित होना। लोगों के बीच साधारण धारणा यह है कि धर्म का अर्थ अनिवार्य रूप से अलग रहना है। धर्म में कुछेक चीज़ों को छोड़कर, जिनको उसने हलाल किया है, सारी चीज़ें हराम हैं।
यही वह ग़लती है, जिसके कारण बहुतों ने खुद को धर्म से अलग कर लिया। इस्लाम धर्म इसी अवधारणा को सही करने के लिए आया है। उसने बताया है कि कि इंसान के लिए असलन सारी चीज़ें हलाल हैं। हराम चीज़ें चंद ही हैं। इस बात पर कहीं कोई मतभेद भी नहीं है।
धर्म व्यक्ति को समाज के सभी सदस्यों के साथ मिलजुल कर रहने का आह्वान करता है। इसी प्रकार धर्म आत्मा और शरीर की आवश्यकताओं और दूसरों के अधिकारों के बीच संतुलन की मांग करता है।
धर्म से दूर समाजों के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक यह है कि इंसानों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए और उसके बुरे कामों से कैसे निपटा जाए। इन समाजों को विकृत आत्माओं के मालिकों को रोकने के लिए कठोर दंड के अलावा कुछ नहीं मिलता।
"जिसने पैदा किया है मृत्यु तथा जीवन को, ताकि तुम्हारी परीक्षा ले कि तुममें किसका कर्म अधिक अच्छा है?" [87] सांसारिक जीवन का क्या मूल्य है?
परीक्षा छात्रों के रैंक और ग्रेड निर्धारित करने के लिए आयोजित की जीती है, जब वे नया व्यवहारिक जीवन शुरू करते हैं। हालांकि परीक्षा छोटी चीज़ होती है, परन्तु यह आगे के नए जीवन में छात्र के भाग्य का फैसला करती है। इसी तरह, इस संसार का जीवन छोटा होने के बावजूद, मनुष्यों के लिए परीक्षण और परीक्षा के समान है, ताकि जब वे बाद के जीवन की ओर जाएँ, तो उनके ग्रेड और रैंक का निर्धारण किया जा सके। इंसान इस दुनिया से भौतिक चीज़ों के साथ नहीं, बल्कि अपने कार्यों के साथ जाता है। इंसान को समझना चाहिए कि उसे इस दुनिया में आख़िरत के जीवन और उसमें बदला पाने के लिए काम करना है।
इंसान को सुख अल्लाह के सामने झुकने, उसकी आज्ञा का पालन करने और उसके निर्णय और भाग्य से संतुष्ट होने से प्राप्त होता है।
बहुत-से लोग दावा करते हैं कि सब कुछ आंतरिक रूप से अर्थहीन है, इस लिए हम एक आनंदपूर्ण जीवन पाने के उद्देश्य से अपने लिए (जीवन) का स्वयं एक अर्थ (लक्ष्य) बना सकते हैं। हमारे अस्तित्व के उद्देश्य को नकारना वास्तव में अपने आप को धोखा देना है। जैसे हम अपने आप से कह रहे हों कि "आइए कल्पना करें या दिखावा करें कि हमारे जीवन का एक उद्देश्य है।" जैसे हम उन बच्चों की तरह हैं जो डॉक्टर और नर्स या माता और पिता बनकर खेलने का नाटक करते हैं। जब तक हम जीवन के उद्देश्य को जान नहीं लेते, तब तक हमें सुख नहीं मिल सकता।
यदि किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध लग्जरी ट्रेन में बिठा दिया जाए। वह प्रथम श्रेणी में यात्र कर रहा हो, एक शानदार और आरामदायक अनुभव हो और विलासिता की पराकाष्ठा हो। क्या वह उसके दिमाग में घूम रहे इन सवालों के जवाब मिले बिना इस यात्रा से खुश हो सकेगा कि वह मैं ट्रेन में कैसे चढ़ा? इस यात्रा का उद्देश्य क्या है? ट्रेन कहाँ जा रही है? यदि ये प्रश्न अनुत्तरित रहें, तो वह कैसे प्रसन्न हो सकता है? भले ही वह अपने तहत सभी विलासिता का आनंद लेना शुरू कर दे, फिर भी वह कभी भी सच्चा और सार्थक आनंद प्राप्त नहीं करे सकेगा। क्या इस यात्रा में स्वादिष्ट भोजन उसके इन सवालों को भूलने के लिए पर्याप्त है? दरअसल इस तरह की खुशी अस्थायी और नकली होगी और इन महत्वपूर्ण सवालों के जवाब खोजने के विषय को जानबूझकर अनदेखा करके ही ऐसी खुशी प्राप्त किया जा सकती है। यह नशे की वजह से पैदा होने वाली एक हालत की तरह है, जो नशा करने वाले को विनाश की ओर ले जाती है। इस प्रकार, मनुष्य को सच्चा सुख तब तक प्राप्त नहीं हो सकता, जब तक कि वह इन अस्तित्वगत प्रश्नों के उत्तर न खोज ले।