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[सूरा अल-रूम : 50]

जिस प्रकार अल्लाह अपने बन्दों को एक ही समय में जीविका प्रदान करता है, उसी प्रकार वह उन का हिसाब लेगा।

अल्लाह तआला ने कहा है :

''और तुम्हें उत्पन्न करना और पुनः जीवित करना केवल एक प्राण के समान है। निःसंदेह, अल्लाह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।'' [85] [सूरा लुक़मान : 28]

एक मुसलमान आत्माओं के आवागवन के सिद्धांत में विश्वास क्यों नहीं करता है?

ब्रह्मांड में सब कुछ अल्लाह के नियंत्रण में है। वह अकेला ही व्यापक ज्ञान, पूर्ण जानकारी और सब कुछ अपनी इच्छा के अधीन करने की क्षमता और शक्ति रखता है। सृष्टि की शुरुआत से ही सूर्य, ग्रह और आकाशगंगाएँ अत्यधिक सटीकता के साथ काम कर रही हैं और यह सटीकता और क्षमता मनुष्य की रचना पर समान रूप से लागू होती है। मानव शरीर और उनकी आत्माओं के बीच मौजूद सामंजस्य से पता चलता है कि इन आत्माओं का जानवरों के शरीर में वास करना संभव नहीं है और वे पौधों, कीड़ों और यहाँ तक कि लोगों के बीच भी चक्कर नहीं लगा सकतीं। अल्लाह ने मनुष्य को बुद्धि और ज्ञान से दिया है, उसे धरती पर खलीफा बनाया है, उसे श्रेष्ठता दी है, सम्मान दिया है एवं दूसरी बहुत सारी सृष्टियों पर उसके दर्ज़ा को ऊँचा किया है। सृष्टिकर्ता की हिकमत एवं न्याय की माँग यह थी कि क़यामत का दिन हो, जिस दिन अल्लाह सभी सृष्टियों को दोबारा उठाएगा और अकेला ही उनका हिसाब लेगा। फिर उसके बाद उनका ठिकाना जन्नत होगा या जहन्नम और उस दिन हर तरह के बुरे या अच्छे कामों को तौला जाएगा।

अल्लाह तआला ने कहा है :

"तो जिसने कण के बराबर भी पुण्य (नेकी) किया होगा, वह उसे देख लेगा। और जिसने कण के बराबर भी पाप किया होगा, वह उसे देख लेगा।'' [86] अल्लाह लोगों से अपने अज़ली (जो हमेशा से है) ज्ञान के अनुसार लिखे गए कर्मों का हिसाब कैसे लेगा, जिसे क़ज़ा एवं क़द्र के नाम से जाना जाता है?

[सूरा अल-ज़लज़ला : 7,8]

उदाहरण के तौर पर जब कोई व्यक्ति किसी स्टोर से कुछ खरीदना चाहे और अपने बड़े बेटे को वह चीज़ खरीदने को भेजने का फैसला करे कि उसे पहले से मालूम था कि उसका यह बेटा समझदार है, वह सीधे जाएगा और वह चीज़ खरीद लाएगा, जो उसका पिता चाहता है, जबकि उसे पता हो कि उसका दूसरा बेटा अपने साथियों के साथ खेलने लगेगा और पैसा नष्ट कर देगा। वास्तव में, यह एक कल्पना है, जिसपर पिता ने अपने निर्णय की बुनियाद रखी है।

भाग्यों की जानकारी हमारे एख्तियार के इरादे के विरुद्ध नहीं है। हमारी नीयतों एवं एख़्तियारों के बारे में अपने पूर्ण ज्ञान की बुनियाद पर अल्लाह हमारे कामों को जानता है। दरअसल अल्लाह इन्सान के मिज़ाज को जानता है। उसने हम सब को पैदा किया है और हमारे दिलों में भलाई या बुराई की जो इच्छाएँ हैं, वह उन्हें जानता है। वह हमारी नीयतों एवं कामों का भी ज्ञान रखता है। इस ज्ञान का उसके पास लिखा हुआ होना हमारे चयन करने के इरादे के विरुद्ध नहीं है। साथ ही यह भी ज्ञात हो कि अल्लाह का ज्ञान व्यापक है और मानव की आशाएँ कभी सच साबित होती हैं, तो कभी झूठ।

हो सकता है कि इंसान ऐसा काम करे जो अल्लाह की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हो, परन्तु उसका यह काम अल्लाह के इरादे के विरूद्ध नहीं है। अल्लाह ने अपनी सृष्टि को चुनने का इरादा दिया है, मगर उनके यह काम, यद्यपि उनमें गुनाह हों, अल्लाह के इरादे के तहत ही हैं। ये उसके इरादे के ख़िलाफ़ नहीं हो सकते। इसलिए कि अल्लाह ने अपने इरादे से आगे बढ़ने की अनुमति किसी को नहीं दी है।

हम अपने दिलों पर ज़बरदस्ती नहीं कर सकते हैं और न अपनी चाहत के विरूद्ध किसी चीज़ को स्वीकार करने पर उन्हें मजबूर कर सकते। इसलिए कि हो सकता है कि हम किसी को डांट-डपट कर अपने साथ रहने पर मजबूर कर सकें, मगर हम उसे हमसे मोहब्बत करने पर मजबूर नहीं कर सकते। अल्लाह ने हमारे दिलों को हर तरह की मजबूरी से सुरक्षित रखा है। यही कारण है कि वह हमारी नीयतों एवं हमारे दिलों में जो कुछ है, उसके आधार पर हमारा हिसाब लेगा एवं हमें प्रतिफल देगा।