जहाँ तक फ़रिश्तों की बात है, तो यह अल्लाह की सृष्टियों में से एक महान सृष्टि हैं, जो नूर से पैदा किए गए हैं। उन्हें अच्छा करने के लिए बनाया गया है। वे अल्लाह के आदेशों का पालन करते हैं। अल्लाह की पाकी बयान करते हैं। इबादत करते हैं। न थकते हैं और न आलस्य करते हैं।
''वे रात और दिन उसकी पवित्रता का गान करते हैं तथा आलसस्य नहीं करते।" [76] "वे अवज्ञा नहीं करते अल्लाह के आदेश की तथा वही करते हैं, जिसका आदेश उन्हें दिया जाए।" [77]
[अल-अंबिया : 20] उनपर ईमान मुसलमानों, यहूदियों एवं ईसाइयों के बीच एक साझे की चीज़ है। उनमें से एक फ़रिश्ते का नाम जिबरील -अलैहिस्सलाम- है, जिन्हें अल्लाह ने अपने एवं अपने रसूलों के बीच मध्यस्थ बनाया है। वह उनके पास वह्य (प्रकाशना) लेकर आते थे। एक और फ़रिश्ता मिकाईल -अलैहिस्सलाम- हैं। उनका काम बारिश बरसाना एवं पौधे उगाना है। एक और फ़रिश्ता इसराफील -अलैहिस्सलाम- हैं।। उनकी ज़िम्मेदारी क़यामत के दिन सूर फूंकना है। इस तरह के और भी फ़रिश्ते हैं।
[सूरा अत-तहरीम : 6]
जहाँ तक जिन्नात की बात है, तो वह एक गैबी दुनिया के प्राणी हैं। जिन्नात इस धरती में हमारे साथ रहते हैं। उन्हें इंसान की तरह अल्लाह के अज्ञापालन का आदेश दिया गया है और उसकी अवज्ञा से मना किया है। परन्तु हम उन्हें देख नहीं सकते। वे आग से पैदा किए गए हैं, जबकि इंसान मिट्टी से पैदा किया गया है। अल्लाह ने बहुत सारे क़िस्से बयान किये हैं, जो जिन्नात की शक्ति एवं उनकी क्षमता को स्पष्ट करते हैं। भौतिक हस्तक्षेप के बिना दिलों में भ्रम पैदा करने या बात डालने की क्षमता उनके पास है। परन्तु वे परोक्ष का ज्ञान नहीं रखते और मज़बूत ईमान वाले मोमिन को कष्ट नहीं दे सकते।
''और शैतान अपने दोस्तों के दिलों मे बात डालते हैं, ताकि वे आपसे लड़ सकें।'' [78] शैतान : शैतान हर विद्रोही का नाम है। चाहे वह इंसानों में से हो या जिन्नों में से।
[सूरा अल-अनआम : 121]
अस्तित्व और घटनाओं के दृष्टांत, सभी इस बात को इंगित करते हैं कि जीवन में हमेशा निर्माण और पुनर्निर्माण का काम चलता रहता है। इसके बहुत सारे उदाहरण हैं, जैसा कि धरती की मृत्यु के बाद बारिश के द्वारा उसे दोबारा जीवित किया जाना इत्यादि।
अल्लाह तआला ने कहा है :
''वह जीवित को मृत से निकालता है तथा मृत को जीवित से निकालता है और धरती को उसके मृत हो जाने के बाद जीवित करता है। और इसी प्रकार, तुम (भी) निकाले जाओगे।'' [79] मरने के बाद जीवित होकर उठने का और एक प्रमाण ब्रह्मांड की मज़बूत व्यवस्था है, जिसमें कोई खराबी नहीं है। यहाँ तक कि परमाणु में मौजूद एक असीम रूप से छोटा इलेक्ट्रॉन भी एक कक्षा से दूसरी कक्षा में तब तक नहीं जा सकता, जब तक कि वह अपनी गति के बराबर ऊर्जा नहीं देता या नहीं लेता। आप इस प्रणाली में कैसे कल्पना कर सकते हैं कि रोई हत्यारा या उत्पीड़क सारे संसार के रब द्वारा हिसाब-किताब लिए जाने या दंडित किए बिना भाग सकेगा?
[सूरा अल-रूम : 19]
अल्लाह तआला ने कहा है :
"क्या तुम यह समझ बैठे हो कि हमने तुम्हें बेकार ही पैदा किया है और यह कि तुम हमारी ओर लौटाए ही नहीं जाओगे। तो सर्वोच्च है अल्लाह वास्तविक अधिपति। नहीं है कोई सच्चा पूज्य, परन्तु वही महिमावान अर्श (सिंहासन) का स्वामी।'' [80] तथा अल्लाह ने आकाशों और धरती को हक़ के साथ पैदा किया और ताकि हर व्यक्ति को उसका बदला दिया जाए जो उसने कमाया तथा उनपर अत्याचार नहीं किया जाएगा।'' [81]
[सूरा अल-मोमिनून : 115,116] ''या वे लोग जिन्होंने बुराइयाँ की हैं, यह समझ रखा है कि हम उन्हें उन लोगों जैसा कर देंगे, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए? उनका जीना और उनका मरना समान होगा? बहुत बुरा है, जो वे निर्णय कर रहे हैं। [सूरा अल-जास़िया : 21, 22]
क्या हम यह नहीं देखते कि इस जीवन में हम अपने कई रिश्तेदारों और दोस्तों को खो देते हैं और जानते हैं कि हम एक दिन उन ही की तरह मर जाएंगे। लेकिन हमारे दिल की गहराई में यह एहसास होता है कि हम हमेशा जीवित रहेंगे। यदि मानव शरीर भौतिक नियमों के भीतर और भौतिक जीवन के ढांचे के भीतर भौतिक होता तथा उसमें ऐसी कोई आत्मा न होती, जिसे दोबारा उठाया जाए और जवाबदेह ठहराया जाए, तो स्वतंत्रता की इस स्वभाविक भावना का कोई अर्थ न होता। आत्मा समय से ऊपर होती है और मौत को पीछे छोड़ देती है।
अल्ला मुर्दों को उसी तरह ज़िन्दा करेगा, जिस तरह उन्हें पहली बार पैदा किया है।
अल्लाह तआला ने कहा है :
''ऐ लोगो! यदि तुम (मरणोपरांत) उठाए जाने के बारे में किसी संदेह में हो, तो निःसंदेह हमने तुम्हें तुच्छ मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य की एक बूँद से, फिर रक्त के थक्के से, फिर माँस की एक बोटी से, जो चित्रित तथा चित्र विहीन होती है, ताकि हम तुम्हारे लिए (अपनी शक्ति को) स्पष्ट कर[3] दें, और हम जिसे चाहते हैं गर्भाशयों में एक नियत समय तक ठहराए रखते हैं, फिर हम तुम्हें एक शिशु के रूप में निकालते हैं, फिर ताकि तुम अपनी जवानी को पहुँचो, और तुममें से कोई वह है जो उठा लिया जाता है, और तुममें से कोई वह है जो जीर्ण आयु की ओर लौटाया जाता है, ताकि वह जानने के बाद कुछ न जाने। तथा तुम धरती को सूखी (मृत) देखते हो, फिर जब हम उसपर पानी उतारते हैं, तो वह लहलहाती है और उभरती है तथा हर प्रकार की सुदृश्य वनस्पतियाँ उगाती है।'' [82] कह दीजिए कि उन्हें वह ज़िन्दा करेगा, जिसने उन्हें पहली बार पैदा किया, जो सब प्रकार की पैदाइश को अच्छी तरह जानने वाला है।'' [83]
[सूरा अल-हज्ज : 5] "क्या इंसान को इतना भी ज्ञान नहीं कि हमने उसे वीर्य (नुत्फ़ा) से पैदा किया है? फिर भी वह खुला झगड़ालू बन बैठा। और उसने हमारे लिए मिसाल बयान की और अपनी असल पैदाईश को भूल गया, कहने लगा इन गली सड़ी हड्डियों को कौन ज़िन्दा कर सकता है? ''तो देखो अल्लाह की दया की निशानियों को, वह कैसे जीवित करता है धरती को, उसके मरण के पश्चात्, निश्चय वही जीवित करने वाला है मुर्दों को, तथा वह सब कुछ करने पर क़ादिर है।'' [84]
[सूरा यासीन : 77-79] एक ही समय में अल्लाह अपने बंदों का कैसे हिसाब लेगा?