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क्या पूर्व रसूलों पर ईमान इस्लामी अक़ीदे का बुनियादी हिस्सा है?

मानवता के मार्गदर्शन लिए भेजे गए सभी नबियों एवं रसूलों पर ईमान, ईमान के स्तम्भों में से एक स्तम्भ है। इसके बगैर किसी का ईमान सही नहीं होता है। किसी भी नबी या रसूल का इंकार दीन की बुनियादी बातों के ख़िलाफ़ है। अल्लाह के सभी नबियों ने अंतिम रसूल -उनपर अल्लाह की शांति हो- के आने का सुसमाचार दिया था। इसी प्रकार विभिन्न समुदायों की ओर अल्लाह के द्वारा भेजे गए नबियों एवं रसूलों के नामों का उल्लेख क़ुरआन में हुआ है, जैसा कि नूह, इब्राहीम, इसमाईल, इसहाक़, याक़ूब, यूसुफ, मूसा, दाऊद, सुलैमान, ईसा आदि -उन सब पर अल्लाह की शांति अवतरित हो-। जबकि कुछ नबियों एवं रसूलों के नाम नहीं भी लिए गए हैं। यह सम्भव है कि हिन्दू एवं बौद्ध मत के कुछ धार्मिक प्रतीक जैसे राम, कृषणा और गौतम बुद्ध भी नबी हों, जिन्हें अल्लाह ने भेजा हो। परन्तु क़ुरआन में इसका कोई प्रमाण नहीं है, इस कारण मुसलमान इसकी पुष्टि नहीं करते हैं। विभिन्न धर्मों में उस समय कई अंतर प्रकट हो गए, जब लोग अपने नबियों के सम्मान में सीमा से आगे बढ़ गए और अल्लाह के सिवा उनकी इबादत करने लगे।

''तथा (ऐ नबी!) हम आपसे पहले बहुत-से रसूलों को भेज चुके हैं, जिनमें से कुछ ऐसे हैं जिनका हाल हम आपसे वर्णन कर चुके हैं तथा उनमें से कुछ ऐसे हैं जिनके हाल का वर्णन हमने आपसे नहीं किया है। तथा किसी रसूल के वश में यह नहीं था कि वह अल्लाह की अनुमति के बिना कोई आयत (चमत्कार) ले आए। फिर जब अल्लाह का आदेश आ गया, तो सत्य के साथ निर्णय कर दिया गया और उस समय झूठे लोग घाटे में रहे।'' [73] “रसूल उस चीज़ पर ईमान लाए जो उसकी तरफ़ अल्लाह की ओर से उतारी गई है और मुसलमान भी ईमान लाए। यह सब अल्लाह, उसके फरिश्तों, उसकी किताबों और उसके रसूलों पर ईमान लाए। उसके रसूलों में से किसी के बीच हम फर्क नहीं करते। उन्होंने कहा कि हमने सुना और अनुसरण किया। हम तुझसे क्षमा माँगते हैं हे हमारे रब! और हमें तेरी ही तरफ़ लौटना है।" [74]

[सूरा ग़ाफ़िर : 78] ''(ऐ मुसलमानो!) तुम सब कहो कि हम अल्लाह पर ईमान लाए तथा उस (क़ुरआन) पर जो हमारी ओर उतारा गया और उसपर जो इब्राहीम, इसमाईल, इसहाक़, याक़ूब तथा उनकी संतानों की ओर उतारा गया और जो मूसा तथा ईसा को दिया गया तथा जो दूसरे नबियों को उनके पालनहार की ओर से दिया गया। हम इनमें से किसी के बीच अंतर नहीं करते और हम उसी के आज्ञाकारी हैं।'' [75]

[सूरा अल-बक़रा : 285] फ़रिश्ता, जिन्न एवं शैतान में क्या अंतर है?