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ईमान के स्तंभ :

ईमान के कितने स्तम्भ हैं, जिनके बिना मुसलमान का ईमान सही नहीं होता है?

ईमान के स्तम्भ निम्नलिखित हैं :

अल्लाह पर ईमान : ''इस बात का दृढ़ विश्वास कि अल्लाह हर चीज़ का रब एवं मालिक है। वही अकेला सृष्टिकर्ता है। वही इबादत, दीनता और अधीनता का अधिकारी है। वह पूर्णता की विशेषताओं से विशिष्ट है। हर कमी से पाक है। इन बातों पर प्रतिबद्धता हो एवं उनके अनुसार अमल किया जाए।'' [70] ''सियाज अल-अक़ीदह अल-ईमान बिल्लाह'', अब्दुल अज़ीज़ अल-राजिही, पृष्ठ: 9

फ़रिश्तों पर ईमान : उनके अस्तित्व को सच मानना और इस बात पर विश्वास रखना कि वे नूर से बनी सृष्टि हैं, जो अल्लाह का अज्ञापालन करती है और उसकी अवज्ञा नहीं करती।

आकाशीय पुस्तकों पर ईमान : इसमें हर वह पुस्तक शामिल है, जिसे अल्लाह ने अपने रसूलों पर उतारा है। उनमें से एक पुस्तक तौरात है, जो मूसा -अलैहिस्सलाम- पर उतारी गयी थी। दूसरी इंजील है, जो ईसा -अलैहिस्सलाम- पर उतारी गई थी। तीसरी ज़बूर है, जो दाऊद -अलैहिस्सलाम- पर उतारी गई थी। इसके अलावा मूसा एवं इब्राहीम -अलैहिमस्सलाम- के सहीफ़े भी हैं। [71] इसी तरह क़ुरआन, जो मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- पर उतारा गया था। इन पुस्तकों की मूल प्रतियों में एकेश्वरवाद का संदेश अर्थात सृष्टिकर्ता पर ईमान और केवल उसी की इबातद करने का संदेश मौजूद था, मगर वो विकृति का शिकार हो गईं, इसलिए क़ुरआन के उतरने एवं इस्लामी शरीयत के लागू होने के बाद इन्हें निरस्त कर दिया गया।

नबियों और रसूलों पर ईमान :

आख़िरत के दिन पर ईमान : क़यामत के दिन को सच मानना, जिस दिन अल्लाह लोगों को हिसाब-किताब एवं बदले के लिए उठाएगा।

निर्णय एवं तक़दीर पर ईमान : इस बात को सच मानना कि अल्लाह ने अपने पहले के ज्ञान एवं अपनी हिकमत के अनुसार कायनात का पूरा अंदाज़ा लगा लिया था (और सबकी तक़दीर लिख दी थी)।

ईमान के बाद एहसान का दर्जा आता है। यह दीन का सबसे उच्च स्थान है। एहसान का अर्थ रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के इन शब्दों से स्पष्ट है : ''एहसान का सारांश यह है कि आप अल्लाह की उपासना इस प्रकार करें कि मानो आप उसको देख रहे हैं। यदि यह कल्पना उत्पन्न न हो सके कि आप उसको देख रहे हैं, तो (यह स्मरण रखें कि) वह आपको अवश्य देख रहा है।'' [72] हदीस-ए-जिबरील, इसे इमाम बुख़ारी (4777) ने तथा इमाम मुस्लिम (9) ने रिवायत किया है।

कामों को, आर्थिक बदला या इंसान से किसी धन्यवाद या प्रशंसा की आशा किए बिना केवल अल्लाह की ख़ुशी हासिल करने के लिए ठीक से करने तथा इस रास्ते में पूरी कोशिश करने को एहसान कहते हैं। इबादतों को इस तरीक़े पर अदा करना कि वो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत के अनुसार हों, अल्लाह की रज़ा हासिल करने के लिए हों और उसकी निकटता प्राप्त करने के इरादे से हों। अच्छे और अच्छी तरह काम करने वाले समाज के सफल रोल मॉडल होते हैं, जो दूसरों को भी उनकी तरह सिर्फ अल्लाह के लिए दीन या दुनियावी नेक कामों के करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसी गिरोह के हाथों समाज विकसित होता है, आगे बढ़ता है, इंसानी जीवन आनंदमय होता है एवं देश तरक़्क़ी करता है और फलता-फूलता है।