इस्लाम धर्म की शिक्षाएँ लचीली तथा जीवन के सभी पहलुओं को शामिल हैं, इसलिए कि यह इंसानी स्वभाव से जुड़ा हुआ है, जिसपर अल्लाह ने इंसान को पैदा किया है। यह धर्म इस स्वभाव के नियमों के अनुरूप आया है और वे (नियम निम्नलिखित) हैं :
केवल एक अल्लाह पर ईमान और इस बात पर विश्वास कि वही सृष्टिकर्ता है, जिसका कोई साझी नहीं है और न ही कोई संतान है। वह किसी मनुष्य, जानवर, मूर्ति या पत्थर के आकार में प्रकट नहीं होता है और तीनों में से तीसरा भी नहीं है। बिना किसी मध्यस्थ के केवल इसी एक सृष्टिकर्ता की इबादत करना। वही ब्रह्मांड और इसमें मौजूद सारी चीज़ों का निर्माता है। उस जैसा कोई नहीं है। इंसान को केवल उसी सृष्टिकर्ता की इबादत करनी है। किसी गुनाह से तौबा करते या उससे मदद माँगते समय किसी पुजारी, संत या किसी मध्यस्थ के बिना सीधे उसी से संबंध स्थापित करना है। सारे संसारों का पालनहार अपनी सृष्टि पर उससे कहीं अधिक दयालु है, जितना एक माँ अपनी संतान पर होती है। वह उन्हें तब-तब क्षमा कर देता है, जब-जब वे उसकी ओर लौटते हैं और तौबा करते हैं। अल्लाह का अधिकार है कि केवल उसी की इबादत की जाए एवं इंसान का अधिकार यह है कि उसका उसके रब के साथ सीधा संबंध हो।
इस्लाम धर्म का अक़ीदा स्पष्ट, प्रमाणित एवं सरल है। अंधविश्वास से बिल्कुल दूर। इस्लाम दिल और अंतरात्मा को संबोधित करने और विश्वास के आधार के रूप में उनपर भरोसा करने पर बस नहीं करता है, बल्कि साथ-साथ संतोषजनक तर्क, स्पष्ट दलील एवं सही कारण भी बताता है, जो दिमागों पर छा जाते हैं और दिलों में घर कर जाते हैं और यह हुआ :
अस्तित्व का उद्देश्य, उसके स्रोत एवं मृत्यु के बाद के अंजाम के बारे में इंसानी दिमाग में घूमने वाले स्वाभाविक प्रश्नों का उत्तर देने के लिए रसूलों को भेजकर। यह ब्रह्मांड से, इंसानी जान से एवं इतिहास से अल्लाह के पूज्य होने पर, उसके एकेश्वरवाद पर, उसकी पूर्णता पर तर्क पेश करता है। साथ ही दोबारा उठाए जाने के विषय में, इंसान के पैदा करने, आकाशों एवं धरती के पैदा करने तथा धरती की मृत्यु के बाद उसके दोबारा ज़िन्दा किए जाने की संभावना से संबंधित प्रमाण प्रस्तुत करता है। अच्छों को प्रतिफल से नवाज़ने एवं बुरों को सज़ा देने की बात से अपनी हिकमत को प्रमाणित करता है।
इस्लाम धर्म का नाम ही अपने आप में सारे संसारों के पालनहार के साथ इंसान के रिश्ते को प्रतिबिंबित करता है। यह अन्य धर्मों के विपरीत किसी व्यक्ति या स्थान के नाम का प्रतिनिधित्व नहीं करता। जबकि यहूदियत (यहूदी धर्म) ने अपने धर्म का नाम यहूज़ा बिन याक़ूब -उनपर अल्लाह की शांति हो- से लिया है, मसीहियत (ईसाई धर्म) ने अपना नाम मसीह -अलैहिस्सलाम- से लिया है और हिन्दू मत का नाम उस धरती का प्रतिनिधित्व करता है, जहाँ यह पला-बढ़ा है।