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सृष्टिकर्ता की रहमत :

इस्लाम में अल्लाह अपने बंदों से प्रेम करता है, तो वह उन्हें व्यक्तिवाद की पद्धति का पालन करने की अनुमति क्यों नहीं देता है? [304] जबकि व्यक्तिवाद मानता है कि व्यक्ति के हितों की रक्षा एक मूलभूत मुद्दा है, जिसे राज्य और समूहों के हितों की परवाह किए बिना प्राप्त किया जाना चाहिए। इसी तरह वे व्यक्ति के हित में किसी बाहरी हस्तक्षेप का विरोध करते हैं। चाहे वह समाज हो या संस्थान जैसा कि सरकार।

क़ुरआन में ऐसी बहुत-सी आयतें हैं, जो बन्दों के लिए अल्लाह की दया और प्रेम का उल्लेख करती हैं। परन्तु बन्दा के लिए अल्लाह की मुहब्बत बन्दों के एक-दूसरे से प्रम की तरह नहीं है। क्योंकि मानवीय मानकों में प्रेम एक ऐसी आवश्यकता है, जिसे प्रेमी तलाश करता है और उसे प्रियतम के पास पा लेता है। जबकि महान अल्लाह हम से बेनियाज़ है, हमारे लिए उसकी मुहब्बत दया और कृपा की मुहब्बत है, ताक़तवर का कमज़ोर के साथ मुहब्बत है, मालदार का फ़क़ीर के साथ मुहब्बत है, सक्षम का असहाय के लिए प्रेम है, बड़े का छोटे के साथ प्रेम है और हिकमत का प्रेम है।

क्या हम अपने प्यार के बहाने अपने बच्चों को वह सब करने देते हैं, जो उन्हें पसंद है? क्या हम अपने प्यार के बहाने अपने छोटे बच्चों को घर की खिड़की से बाहर कूदने या बिजली के नंगे तार से खेलने की अनुमति देते हैं?

यह असंभव है कि किसी व्यक्ति के निर्णय उसके व्यक्तिगत लाभ और आनंद पर आधारित हों और वह ध्यान का मुख्य केंद्र हो। उसके व्यक्तिगत हित देश के हितों एवं धर्म व समाज के प्रभावों से ऊपर हो, उसे अपना लिंग बदलने की अनुमति हो, वह जो चाहे करे, जो चाहे पहने एवं रास्ते में जैसा चाहे करे, इस तर्क की बुनियाद पर कि रास्ता सभी का है।

यदि कोई व्यक्ति एक साझा घर में लोगों के समूह के साथ रहता हो, क्या वह इस बात को स्वीकार करेगा कि घर का उसका कोई साथी इस आधार पर कि घर सबका है, घर के हॉल में शौच करने जैसा घिनौना काम करे? क्या वह इस घर में बिना किसी नियम या नियंत्रण के रहने को स्वीकार करेगा? पूर्ण स्वतंत्रता वाला व्यक्ति एक बदसूरत प्राणी बन जाता है और जैसा कि यह सिद्ध हो चुका है और इसमें किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं है कि इंसान इस पूर्ण स्वतंत्रता को सहन करने में असमर्थ है।

व्यक्तिवाद सामूहिक पहचान का स्थान नहीं ले सकत, चाहे व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली या प्रभावशाली क्यों न हो। समाज के सदस्य ऐसे वर्ग हैं, जिन्हें एक-दूसरे की आवश्यकता है। वे एक-दूसरे से अप्रासंगिक नहीं हो सकते। उनमें से कुछ लोग फ़ौजी हैं, कुछ डॉक्टर, कुछ नर्स तो कुछ जज हैं। भला उनमें से किसी एक के लिए यह कैसे संभव है कि वह अपनी ख़ुशी हासिल करने के लिए दूसरों पर अपना लाभ और निजी स्वार्थ लादे और ध्यान का मुख्य केंद्र बन जाए?

इंसान अपनी ख़्वाहिशों को स्वतंत्र छोड़कर उनका ग़ुलाम बन जाता है, जबकि अल्लाह चाहता है कि वह उनका मालिक बने। अल्लाह इंसान से चाहता है कि वह एक समझदार, बुद्धिमान व्यक्ति बने, जो अपनी इच्छाओं को नियंत्रित रखे। उससे इच्छाओं को बिल्कुल ख़त्म करने की मांग नहीं है, बल्कि उसे आत्मा और रूह को ऊपर उठाने के लिए इन इच्छाओं को सही दिशा दिखाना है।

जब एक पिता अपने बच्चों को अध्ययन के लिए कुछ समय खास करने के लिए बाध्य करता है, ताकि वे भविष्य में ज्ञान के मैदान में एक ऊँचा स्थान प्राप्त कर सकें। जबकि उन बच्चों को केवल खेलने की इच्छा होती है, तो क्या वह इस समय एक क्रूर पिता माना जाता है?

सृष्टिकर्ता अपने बन्दों के लिए दयालु है, तो वह समलैंगिक प्रवृत्तियों को स्वीकार क्यों नहीं करता है?

अल्लाह तआला ने कहा है :

"जब उसने अपनी जाति से कहा : क्या तुम ऐसी निर्लज्जता का काम कर रहे हो, जो तुमसे पहले संसारवासियों में से किसी ने नहीं किया है? तुम स्त्रियों को छोड़कर कामवासना की पूर्ति के लिए पुरुषों के पास जाते हो? बल्कि तुम सीमा लांघने वाली जाति हो। और उसकी जाति का उत्तर बस यह था कि इनको अपनी बस्ती से निकाल दो। ये लोग अपने में बड़े पवित्र बन रहे हैं।" [305] [सूरा अल-आराफ़ : 80-82]

यह आयत पुष्टि करती है कि समलैंगिक वंशानुगत नहीं है और न यह मानव आनुवंशिक कोड की संरचना का हिस्सा है। क्योंकि लूत की जाति इस तरह की अश्लीलता का आविष्कार करने वाला समुदाय है। यह व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुरूप है, जिससे इसकी पुष्टि होती है कि समलैंगिकता का आनुवंशिकी से कोई लेना-देना नहीं है। [306] ''मौसूअह अल-कहील लिल ईजाज़ फी अल-क़ुरआन व अल-सुन्नह'', https://kaheel7.net/?p=15851

क्या हम चोर की चोरी करने की प्रवृत्ति को स्वीकार करेंगे और उसका सम्मान करेंगे? यह भी प्रवृत्ति है, लेकिन दोनों ही मामलों में यह अप्राकृतिक प्रवृत्ति है। यह मानव प्रवृत्ति के विरूद्ध बग़ावत है और प्रकृति पर हमला है। इसे ठीक किया जाना चाहिए।

अल्लाह ने मनुष्य को पैदा किया और उसे सही रास्ता दिखाया और उसके पास अच्छाई और बुराई के रास्तों के बीच चयन करने की स्वतंत्रता है।

अल्लाह तआला ने कहा है :

''और हमने उसे दोनों रास्ते दिखा दिए।'' [307] [सूरा अल-बलद : 10]

इसलिए, हम पाते हैं कि समलैंगिकता को प्रतिबंधित करने वाले समाज में शायद ही कभी यह अप्रकृतिक चीज़ दिखाई पड़ती हो, जबकि जिस वातावरण में इस व्यवहार को हलाल समझा जाता है और इसे प्रोत्साहन दिया जाता है, उसमें समलैंगिकों का अनुपात बढ़ जाता है। यह इंगित करता है कि किसी व्यक्ति में विचलन की संभावना को निर्धारित करने वाली चीज़ वातावरण और उसके आस-पास की शिक्षाएँ हैं।

उदाहरण के तौर पर चैनलों को देखने, प्रौद्योगिकी के उपयोग या किसी फुटबॉल टीम के लिए कट्टर समर्थन के अनुसार, एक व्यक्ति की पहचान हर पल बदलती रहती है। वैश्वीकरण ने उसे एक जटिल इंसान बना दिया है। गद्दार एक दृष्टिकोण वाला हो गया, असामान्य सामान्य व्यवहार का मालिक बन गया, उसके पास सार्वजनिक बहस में भाग लेने का क़ानूनी अधिकार आ गया, बल्कि हम पे उसकी मदद करना एवं उससे सुलह करना ज़रूरी हो गया। आज वह लोग हावी हो गए जिनके पास तकनीक है। यदि असामान्य वह लोग हैं जिनके पास शक्ति के साधन हैं तो वह दूसरों पर अपनी मान्यताएँ लागू करने की कोशिश करते हैं, जिससे इंसान का रिश्ता पहले अपने आपसे, फिर अपने समाज से और फिर अपने सृष्टिकर्ता से ख़राब होता है। फिर यदि व्यक्तिवाद सीधे समलैंगिकता से जुड़ जाए, तो वह मानव वृत्ति ग़ायब हो जाती है, जिससे मानव जाति अपना रिश्ता जोड़ती है और एक परिवार की अवधारणाएं खत्म हो जाती हैं। इस लिए पश्चिम ने व्यक्तिवाद से छुटकारा पाने के उपाय विकसित करना शुरू कर दिए हैं, क्योंकि इस अवधारणा पर चलते रहने से आधुनिक मनुष्य ने जो कमाया है, वह बर्बाद हो जाएगा। ठीक उसी तरह जैसे उसने परिवार की अवधारणा को खो दिया है। इस प्रकार, पश्चिम आज भी समाज में व्यक्तियों की संख्या कम होने की समस्या से पीड़ित है, जिससे प्रवासियों को आकर्षित करने के लिए दरवाजे खुल गए हैं। अल्लाह में विश्वास, उसके द्वारा हमारे लिए बनाए गए ब्रह्मांड के नियमों का सम्मान और उसके आदेशों और निषेधों का पालन करना, दुनिया तथा आख़िरत में खुशी का मार्ग है।