व्यभिचार के अपराध के गंभीर दंड के संंबंध में यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम के बीच पूर्ण सहमति है। [223] [ओल्ड टेस्टामेंट, Book of Leviticus : 20: 10 –18]
ईसाई धर्म में, मसीह ने व्यभिचार के अर्थ पर जोर दिया है। इसे एक मूर्त तथा भौतिक कार्य तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे एक नैतिक अवधारणा में बदल दिया है। [224] ईसाई धर्म ने व्यभिचारियों को अल्लाह के राज्य का वारिस होने से वंचित क़रार दिया है, और उसके बाद उनके पास नरक में अनन्त पीड़ा के अलावा कोई विकल्प नहीं है। [225] इस जीवन में व्यभिचारियों की सज़ा वही है, जो मूसा -अलैहिस्सलाम- की शरीयत द्वारा निर्धारित की गई थी। अर्थात्, पत्थर मारकर मार डालना। [न्यू टेस्टामेंट, मत्ती का सुसमाचार 5:27-30] [न्यू टेस्टामेंट, First Epistle to the Corinthians 6:9-10] [न्यू टेस्टामेंट, Gospel of John 8:3-11]
साथ ही बाइबिल के विद्वान आज यह स्वीकार करते हैं कि मसीह के व्यभिचारिणी को क्षमा करने की कहानी, वास्तव में, जॉन की इंजील की शुरुआती प्रतियों में मौजूद नहीं है। इसे बाद में जोड़ दिया गया है और आधुनिक अनुवादों से यही साबित होता है। और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मसीह -अलैहिस्सलाम- ने अपनी दावत के आरम्भ में ही यह घोषणा कर दी थी कि वह मूसा की व्यवस्था और उससे पहले के नबियों में दोष निकालने नहीं आए हैं। मूसा के क़ानून से एक बिंदु भी कम करने की तुलना में आसमान और पृथ्वी का विनाश उनके लिए आसान है, जैसा कि ल्यूक की इनजील में कहा गया है। [228] इस तरह यह संभव नहीं है कि मसीह -अलैहिस्सलाम- व्यभिचारी स्त्री को दण्डित किए बिना छोड़कर मूसा की व्यवस्था को भंग करें। /https://www.alukah.net/sharia/ 0/82804/ [न्यू टेस्टामेंट, Gospel of Luke16:17]
चार गवाहों की गवाही के साथ ही उनके द्वारा व्यभिचार की घटना का ऐसा विवरण प्रस्तुत किया जाना ज़रूरी है, जो इस घटनी की पुष्टि करे। केवल एक मर्द का किसी महिला के साथ किसी स्थान में पाया जाना पर्याप्त नहीं है। यदि एक गवाह भी गवाही देने से पीछे हट जाए, तो हद क़ायम नहीं की जाएगी। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इतिहास में इस्लामी शरीयत द्वारा व्यभिचार का दंड दिए जाने की घटनाएँ इतनी कम क्यों सामने आईं। कारण यह है कि व्यभिचार इस तरीक़े से ही साबित होता है और उसे इस तरीक़े से साबित करना बहुत मुश्किल है, बल्कि असंभव है। हाँ व्यभिचारी क़बूल कर ले, तो बात अलग है।
जब दोनों पापियों में से एक के कबूल करने के आधार पर -चार गवाहों की गवाही के आधार पर नहीं- व्यभिचार की सजा दी जाए और दूसरा पक्ष अपना गुनाह क़बूल न करे, तो उसे दंड नहीं दिया जाएगा।
साथ ही अल्लाह ने तौबा का दरवाज़ा खुला रखा है।
अल्लाह तआला ने कहा है :
''अल्लाह के पास उन्हीं लोगों की तौबा स्वीकार्य है, जो अनजाने में बुराई कर बैठते हैं, फिर शीघ्र ही तौबा कर लेते हैं। तो अल्लाह ऐसे ही लोगों की तौबा क़बूल करता है। तथा अल्लाह सब कुछ जानने वाला हिकमत वाला है।'' [229] [सूरा अल-निसा : 17]
''जो व्यक्ति कोई बुरा काम करे अथवा अपने ऊपर अत्याचार करे, फिर अल्लाह से क्षमा माँगे, तो वह अल्लाह को बहुत क्षमा करने वाला, अत्यंत दयावान् पाएगा।'' [230] [सूरा अल-निसा : 110]
"अल्लाह तुम्हारे ऊपर आसानी करना चाहता है और इन्सान कमज़ोर पैदा किया गया है।'' [231] [सूरा अल-निसा : 28]
इस्लाम इन्सान की फ़ितरी आवश्यकता को स्वीकार करता है। लेकिन वह इस प्राकृतिक भूख को मिटाने के लिए वैध तरीक़े पर काम करता है और वह है शादी का तरीक़ा। वह जल्दी शादी की बात करता है। यदि आर्थिक स्थिति साथ न दे तो सरकारी ख़ज़ाना से मदद पहुँचाता है। वह अनैतिकता फैलाने के सभी तरीकों से समाज को साफ करने, उच्च लक्ष्यों को निर्धारित करने -जिनमें काफी एनर्जी लगती है और एनर्जी का उपयोग भले कामों में होता है- और खाली समय को अल्लाह के क़रीब आने में बिताने की प्रेरणा देता है। यह सारी चीज़ें व्यभिचार के दरवाज़ों को बंद करने का काम करती हैं। इसके बावजूद इस्लाम तब तक सज़ा देने की बात नहीं करता, जब तक चार गवाहों की गवाही से कुकर्म सिद्ध न हो जाए। ध्यान रहे कि चार गवाह उस समय तक उपलब्ध नहीं हो सकते, जब तक अपराधी ने खुले तौर पर यह जघन्य अपराध न किया हो। इसके बाद ही इन्सान इस कड़ी सज़ा का हकदार होता है। ज्ञात रहे कि व्यभिचार एक बड़ा पाप है। चाहे वह गुप्त रूप से किया गया हो या सार्वजनिक रूप से।
एक महिला ने -बिना किसी दबाव के- स्वयं नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास आकर अपने कुकर्म को स्वीकार किया और अपने ऊपर हद्द लागू करने का आग्रह किय। वह व्यभिचार से गर्भवती थी, तो अल्लाह के नबी ने उसके वली को बुलाया और फरमाया कि इसके साथ अच्छा बर्ताव करो। यह दरअसल शरीयत की संपूर्णता एवं सृष्टियों के प्रति सृष्टिकर्ता की पूर्ण दया का प्रमाण है।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उससे कहा कि लौट जाओ यहाँ तक कि बच्चा को जन्म दे दो। बच्चा जन्म देने के बाद वह फिर लौट आई, तो आपने उससे कहा कि लौट जाओ, यहाँ तक कि तुम्हारा बच्चा खाना खाने लगे (दूध छोड़ दे)। बच्चे को दूध छुड़ाने के बाद रसूल के पास वापस लौटने की उसकी ज़िद के आधार पर आपने उसपर हद्द लागू की और कहा कि इसने ऐसी तौबा की है कि यदि उसे मदीना के सत्तर आदमियों पर बाँट दिया जाए, तो भी यह उनके लिए पर्याप्त होगी।
रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस आचारण से आपकी दया स्पष्ट है।