इस्लाम प्रयोगात्मक विज्ञान के विरुद्ध नहीं है। वास्तव में, कई पश्चिमी विद्वान जो अल्लाह में विश्वास नहीं रखते, अपनी वैज्ञानिक खोजों के माध्यम से सृष्टिकर्ता के अस्तित्व की अनिवार्यता तक पहुंच चुके हैं। इस्लाम अक़्ल और विचार के तर्क को प्रधानता देता है और ब्रह्मांड में सोच-विचार करने को कहता है।
इस्लाम सभी मनुष्यों को अल्लाह की निशानियों और उसकी सृष्टि की अद्भुत रचना पर विचार करने, पृथ्वी का भ्रमण करने, ब्रह्मांड पर गौर करने, तर्क का उपयोग करने और विचार और तर्क को लागू करने का आह्वान करता है। बल्कि, वह क्षितिजों और अपने भीतर एक से अधिक बार विचार करने के लिए कहता है। ऐसा करने से इनसान निश्चित रूप से उन उत्तरों को पा लेगा, जिनकी वह तलाश कर रहा है। वह सृष्टिकर्ता के अस्तित्व पर ज़रूर विश्वास करने लगेगा, वह पूर्ण विश्वास और निश्चितता तक पहुंच जाएगा कि इस ब्रह्मांड को ध्यान, इरादे तथा एक लक्ष्य के साथ बनाया गया है। इस तरह वह अंततः उस निष्कर्ष पर पहुंचेगा, जिसका इस्लाम आह्वान करता है कि अल्लाह के अलावा कोई पूज्य नहीं है।
अल्लाह तआला ने कहा है :
''जिसने ऊपर-तले सात आकाश बनाए। तुम अत्यंत दयावान् की रचना में कोई असंगति नहीं देखोगे। फिर पुनः देखो, क्या तुम्हें कोई दरार दिखाई देता है? फिर बार-बार निगाह दौड़ाओ। निगाह असफल होकर तुम्हारी ओर पलट आएगी और वह थकी हुई होगी।'' [127] [सूरा अल-मुल्क : 3,4]
''शीघ्र ही हम उन्हें अपनी निशानियाँ संसार के किनारों में तथा स्वयं उनके भीतर दिखाएँगे, यहाँ तक कि उनके लिए स्पष्ट हो जाए कि निश्चय यही सत्य है।[19] और क्या आपका पालनहार प्रयाप्त नहीं इस बात के लिए कि निःसंदेह वह चीज़ पर गवाह है?'' [128] [सूरा फ़ुस्सिलत : 53]
''निःसंदेह आकाशों और धरती की रचना तथा रात और दिन के बदलने में, तथा उन नावों में जो लोगों को लाभ देने वाली चीज़ें लेकर सागरों में चलती हैं, और उस पानी में जो जो अल्लाह ने आकाश से उतारा, फिर उसके द्वारा धरती को उसकी मृत्यु के पश्चात् जीवित कर दिया और उसमें हर प्रकार के जानवर फैला दिए, तथा हवाओं को फेरने (बदलने) में और उस बादल में, जो आकाश और धरती के बीच वशीभूत किया हुआ है, (इन सब चीज़ों में) उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो समझ-बूझ रखते हैं।'' [129] [सूरा अल-बक़रा : 164]
''और उसने तुम्हारे लिए रात्रि तथा दिन को सेवा में लगा रखा है तथा सूर्य और चाँद को, और (हाँ) सितारे उसके आदेश के अधीन हैं। वास्तव में, इसमें कई निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो समझ-बूझ रखते हैं।'' [130] [सूरा अन-नह्ल : 12]
''तथा आकाश को हमने बनाया है हाथों से और हम निश्चय विस्तार करने वाले हैं।'' [131] [सूरा अल-ज़ारियात : 47]
''क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ने आकाश से कुछ पानी उतारा। फिर उसे स्रोतों के रूप में धरती में चलाया। फिर वह उसके साथ विभिन्न रंगों की खेती निकालता है। फिर वह सूख जाती है, तो तुम उसे पीली देखते हो। फिर वह उसे चूरा-चूरा कर देता है। निःसंदेह इसमें बुद्धि वालों के लिए निश्चय बड़ी सीख है।'' [132] [सूरा अल-ज़ुमर: 21] आधुनिक विज्ञान द्वारा खोजे गए जल चक्र का वर्णन 500 साल पहले किया गया था। इससे पहले, लोगों का मानना था कि पानी समुद्र से आता है और भूमि में प्रवेश करता है और इस प्रकार झरने और भूजल का निर्माण होता है। यह भी माना जाता था कि मिट्टी में नमी संघनित होकर पानी बनाती है। जबकि 1400 साल पहले क़ुरआन में साफ तौर पर बताया गया है कि पानी कैसे बनता है।
''क्या जिन लोगों ने कुफ़्र किया यह नहीं देखा कि आकाश और धरती दोनों मिले हुए थे, फिर हमने दोनों को अलग-अलग कर दिया, तथा हमने पानी से हर जीवित चीज़ को बनाया? तो क्या ये लोग ईमान नहीं लाते?'' [133] [सूरा अल-अंबिया: 30] केवल आधुनिक विज्ञान ही यह पता लगाने में सक्षम हुआ है कि जीवन पानी से बना है और पहली कोशिका का मुख्य घटक पानी है। यह जानकारी गैर-मुस्लिमों को नहीं थी। इसी तरह पादप दुनिया में संतुलन के बारे में भी उनको पता नहीं था। परन्तु क़ुरआन ने इसको बयान कर दिया, ताकि यह प्रमाणित हो कि मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- अपनी इच्छा से कुछ नहीं बोलते थे।
''और निःसंदेह हमने मनुष्य को तुच्छ मिट्टी के एक सार से पैदा किया। फिर हमने उसे वीर्य बनाकर एक सुरक्षित स्थान में रखा। फिर हमने उस वीर्य को एक जमा हुआ रक्त बनाया, फिर हमने उस जमे हुए रक्त को एक बोटी बनाया, फिर हमने उस बोटी को हड्डियाँ बनाया, फिर हमने उन हड्डियों को कुछ माँस पहनाया, फिर हमने उसे एक अन्य रूप में पैदा कर दिया। तो बहुत बरकत वाला है अल्लाह, जो बनाने वालों में सबसे अच्छा है।'' [134] [सूरा अल-मोमिनून : 12-14] कनाडा के वैज्ञानिक कीथ मूर को दुनिया के सबसे प्रमुख शरीर रचना विज्ञानियों और भ्रूणविज्ञानियों में से एक माना जाता है। उन्होंने कई विश्वविद्यालयों की कई विशिष्ट वैज्ञानिक यात्राएं की हैं और कई अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठनों की अध्यक्षता की है, जैसे कनाडा और अमेरिका में शरीर रचना विज्ञानियों और भ्रूणविज्ञानियों का संगठन और बायोसाइंसेज संघ की परिषद। उन्हें कनाडा की रॉयल मेडिकल सोसाइटी, इंटरनेशनल एकेडमी ऑफ साइटोलॉजी, अमेरिकन फेडरेशन ऑफ फिजिशियन ऑफ एनाटॉमी और फेडरेशन ऑफ अमेरिका इन एनाटॉमी का सदस्य भी चुना गया था। कीथ मूर ने 1980 में पवित्र क़ुरआन और भ्रूण के निर्माण से संबंधित उसकी आयतों -जो सभी आधुनिक विज्ञानों से पहले आई थीं- को पढ़ने के बाद इस्लाम ग्रहण करने की घोषणा की। वह इस्लाम ग्रहण करने की अपनी कहानी बयान करते हुए कहते हैं : मुझे वैज्ञानिक चमत्कारों पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था, जो सत्तर के दशक के अंत में मास्को में आयोजित किया गया था। कुछ मुस्लिम विद्वानों के ब्रह्मांड से संबंधित आयतों और विशेष रूप से अल्लाह तआला की इस आयत ''वह आकाश से धरती तक, सारे मामलों का प्रबंधन करता है। फिर वह काम एक ऐसे दिन में उसकी तरफ चढ़ जाता है, जिसका अनुमान तुम्हारी गिनती के एक हज़ार साल के बराबर है।'' [सूरा अल-सजदा : 5] के अध्ययन के दौरान, मुस्लिम विद्वानों ने दूसरी आयतों को भी बयान करना जारी रखा, जिनमें भ्रूण और मानव के गठन के बारे में बात की गई थी। क़ुरआन की अन्य आयतों को जानने और अधिक व्यापक रूप से सीखने में मेरी गहरी रुचि के कारण, मैंने ध्यान देकार सुनना जारी रखा। उन आयतों में सभी के लिए मजबूत जवाब थे और मुझपर उनका एक विशेष प्रभाव पड़ा। मुझे लगने लगा कि यही वह चीज़ है, जिसे मैं चाहता हूं और कई वर्षों से प्रयोगशालाओं और अनुसंधान के माध्यम से और आधुनिक तकनीक का उपयोग कर खोज रहा हूं। परन्तु क़ुरआन इसे तकनीक और विज्ञान से पहले ही व्यापक और पूर्ण रूप से लाया है।
''ऐ लोगो! यदि तुम (मरणोपरांत) उठाए जाने के बारे में किसी संदेह में हो, तो निःसंदेह हमने तुम्हें तुच्छ मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य की एक बूँद से, फिर रक्त के थक्के से, फिर माँस की एक बोटी से, जो चित्रित तथा चित्र विहीन होती है, ताकि हम तुम्हारे लिए (अपनी शक्ति को) स्पष्ट कर दें, और हम जिसे चाहते हैं गर्भाशयों में एक नियत समय तक ठहराए रखते हैं, फिर हम तुम्हें एक शिशु के रूप में निकालते हैं, फिर ताकि तुम अपनी जवानी को पहुँचो, और तुममें से कोई वह है जो उठा लिया जाता है, और तुममें से कोई वह है जो जीर्ण आयु की ओर लौटाया जाता है, ताकि वह जानने के बाद कुछ न जाने। तथा तुम धरती को सूखी (मृत) देखते हो, फिर जब हम उसपर पानी उतारते हैं, तो वह लहलहाती है और उभरती है तथा हर प्रकार की सुदृश्य वनस्पतियाँ उगाती है।'' [135] [सूरा अल-हज्ज: 5] भ्रूण के विकास का यह सटीक चक्र है, जैसा कि आधुनिक विज्ञान ने पता लगाया है।