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[सूरा अल-बक़रा : 62]

ज्ञानोदय की इस्लामी अवधारणा विश्वास और विज्ञान की ठोस नींव पर आधारित है, जो विवेक के ज्ञान और हृदय के ज्ञान को पहले अल्लाह पर ईमान के साथ और फिर विज्ञान के साथ जोड़ती है, जो ईमान से अलग नहीं हो सकता।

यूरोपीय ज्ञानोदय की अवधारणा को अन्य पश्चिमी अवधारणाओं की तरह इस्लामी समाजों में स्थानांतरित कर दिया गया है। इस्लामी अवधारणा में ज्ञानोदय केवल ऐसे दिमाग पर निर्भर नहीं होता है, जिसे ईमान का प्रकाश प्राप्त न हो। उसी तरह किसी व्यक्ति को अपने ईमान का लाभ नहीं होता है, यदि वह बुद्धि की नेमत को, सोच, चिंतन, विचार और मामलों को इस तरह से प्रबंधित करने में उपयोग नहीं करता है, जिससे सार्वजनिक हित प्राप्त हो, जो लोगों को लाभान्वित करता हो और धरती पर बाक़ी रहता हो।

मध्य काल के अंधकार में मुसलमानों ने सभ्यता के प्रकाश को बहाल किया, जो पश्चिम और पूरब के सभी देशों, यहाँ तक कि कांस्टेंटिनोपल में भी बुझ चुका था।

यूरोप में ज्ञानोदय आंदोलन चर्च के अधिकारियों द्वारा तर्क और मानवीय इच्छा के खिलाफ किए गए अत्याचार की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया था। जबकि यह स्थिति इस्लामी सभ्यता में कभी पैदा नहीं हुई।

अल्लाह तआला ने कहा है :

''अल्लाह उनका सहायक है जो ईमान लाए। वह उनको अंधेरों से निकालता है और प्रकाश में लाता है, और जो काफ़िर (विश्वासहीन) हैं, उनके सहायक ताग़ूत (उनके मिथ्या पूज्य) हैं, जो उन्हें प्रकाश से अंधेरों की और ले जाते हैं। यही लोग जहन्नम जाने वाले हैं, और वे उसमें सदैव रहेंगे।'' [98] इसलिए कि इंसान जिसे अल्लाह अज्ञानता, बहुदेववाद और अंधविश्वास के अंधेरों से ईमान, ज्ञान, जानकारी एवं सत्य के प्रकाश की ओर निकालता है, वह बुद्धि, अंतर्दृष्टि और एहसास का प्रकाशित व्यक्ति है।

[सूरा अल-बक़रा : 257] क़ुरआन की इन आयतों में सोच-विचार करने से हम पाते हैं कि इंसान को अंधेरे से निकालने के पीछे अल्लाह का इरादा ही काम करता है और यही इंसान के लिए रब का मार्गदर्शन है, जो अल्लाह की अनुमति से ही अंजाम पाता है।

जैसा कि अल्लाह तआला ने पवित्र क़ुरआन को नूर (प्रकाश) कहा है :

''और अल्लाह की तरफ से आपके पास नूर और खुली किताब आ गई है।'' [99] महान अल्लाह ने अपने रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- पर क़ुरआन उतारा, और अपने रसूल मूसा एवं ईसा -उन दोनों पर अल्लाह की शांति हो- पर तौरात और इंजील उतारा, ताकि वे लोगों को अंधेरों से प्रकाश की ओर निकालें और इस तरह उसने मार्गदर्शन को नूर से जोड़कर दिखाया।

[सूरा अल-माइदा : 15]

अल्लाह तआला ने कहा है :

"बेशक हमने तौरात उतारी, जिसमें हिदायत और रोशनी है।" [100] “और हमने उनको (ईसा अलैहिस्सलाम को) इन्जील प्रदान की, जिसमें मार्गदर्शन एवं ज्योति है, तथा वह अपने से पूर्व किताब तौरात की पुष्टि करती है तथा वह परहेज़गारों के लिए मार्गदर्शन एवं सदुपदेश है।” [101]

[सूरा अल-माइदा : 44] अल्लाह की तरफ से आई रोशनी के बिना मार्गदर्शन नहीं हो सकता, और जो भी रोशनी इंसान के हृदय एवं जीवन को रौशन करती है, वह अल्लाह की अनुमति से करती है।

[सूरा अल-माइदा : 15]

अल्लाह तआला ने कहा है :

''अल्लाह आकाशों तथा धरती का नूर है।'' [102] यहां हम देख रहे हैं कि क़ुरआन में नूर एकवचन ही आया है, जबकि अंधेरा बहुवचन। इसमें बहुत बारीकी के साथ स्थितियों को बयान किया गया है।

[सूरा अल-नूर : 35]

लेख ''इस्लाम में ज्ञानोदय'', डा० अल-तुवैजरी। लेख का लिंक: https://www.albayan.ae/five-senses/2001-11-16-1.1129413