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सही धर्म की परख कैसे हो?

सही धर्म की परख तीन मुख्य बिंदुओं के आधार पर की जा सकती है [44] : पुस्तक ''ख़ुराफ़तुल इल्हाद'' (नास्तिक्ता का मिथक) का उद्धरित। लेखक : डा० अम्र शरीफ़, प्रकाशन: 2014 ई०।

इस धर्म में सृष्टिकर्ता या पूज्य के गुण।

रसूल या नबी की विशेषताएँ।

संदेश का अंतर्वस्तु :

आकाशीय संदेश या धर्म के अंदर सृष्टिकर्ता के सुंदरता एवं प्रताप पर आधारित गुणों का वर्णन एवं व्याख्या होनी चाहिए, उसका परिचय होना चाहिए औप उसके वजूद के प्रमाण होने चाहिएँ।

''आप कह दीजिए कि वह अल्लाह एक है। अल्लाह बेनियाज है। न उसने ( किसी को ) जना, और न (किसी ने) उसको जना है। और न उसके बराबर कोई है।'' [45] [सूरा अन-निसा : 111]

''वह अल्लाह ही है, जिसके अतिरिक्त कोई (सत्य) पूज्य नहीं है। वह गुप्त तथा प्रत्यक्ष हर चीज़ का जानने वाला है। वह सबसे बड़ा दयालु एवं सबसे बड़ा कृपावान है। वही अल्लाह है, जिसके सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं है। वह बादशाह, बहुत पाक, सभी दोषों से साफ, सुरक्षा व शांति प्रदान करने वाला, रक्षक, ग़ालिब, ताक़तवर और बड़ाई वाला है। अल्लाह पाक है उन चीजों से जिनको ये उसका साझी बनाते हैं। 'वही अल्लाह है, पैदा करने वाला, अस्तित्व प्रदान करने वाला, रूप देने वाला। उसी के लिए शुभ नाम हैं, उसकी पवित्रता का वर्णन करता है जो (भी) आकाशों तथा धरती में है और वह प्रभावशाली, ह़िकमत वाला है।'' [46] जहाँ तक रसूल का अर्थ एवं उसके गुणों की बात है, तो धर्म एवं आकाशीय संदेश :

[सूरा अल-इख़्लिास़ : 1-4]

1- बताता है कि सृष्टिकर्ता रसूल के साथ कैसे संवाद करता है।

''और मैंने तुझे चुन लिया है। अतः ध्यान से सुन, जो वह्य की जा रही है।'' [47] 2- वह बयान करता है कि सभी नबियों एवं रसूलों की ज़िम्मेदारी अल्लाह के संदंश को पहुँचाना है।

[सूरा ताहा : 13]

''हे रसूल! जो कुछ आपके रब की तरफ से आपपर उतारा गया है, उसको पहुँचा दें।'' [48] 3- वह स्पष्ट करता है कि रसूल लोगों को अपनी इबादत की ओर नहीं, बल्कि एक अल्लाह की इबादत की ओर बुलाने के लिए आए थे।

[सूरा अल-माइदा : 67]

''किसी मनुष्य का यह अधिकार नहीं कि अल्लाह उसे पुस्तक, निर्णय शक्ति और नुबुव्वत (पैग़ंबरी) प्रदान करे, फिर वह लोगों से कहे कि अल्लाह को छोड़कर मेरे बंदे बन जाओ, बल्कि (वह तो यही कहेगा कि) तुम रब वाले बनो, इसलिए कि तुम पुस्तक की शिक्षा दिया करते थे और इसलिए कि तुम पढ़ा करते थे।'' [49] 4- वह इस बात की पुष्टि करता है कि सभी नबी एवं रसूल मानवीय सीमित पूर्णता के शिखर पर होते हैं।

[सूरा आल-ए-इमरान : 79]

"और बेशक आप उच्च आचरण के शिखर पर हैं।" 5- वह इस बात की पुष्टि करता है कि सभी रसूल मनुष्य के लिए एक मानवीय आदर्श प्रस्तुत करते हैं।

[सूरा अल-क़लम : 4]

"निःसंदेह तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में उत्तम आदर्श है। उसके लिए, जो अल्लाह और अंतिम दिन की आशा रखता हो, तथा अल्लाह को अत्यधिक याद करता हो।" [51] ऐसे धर्म को स्वीकार करना असंभव है, जिसके धार्मिक टेक्स्ट यह बताएँ कि उनके नबी व्यभिचारी हैं, हत्यारे हैं, बेरहम हैं या धोखेबाज़ हैं। इसी तरह किसी ऐसे धर्म को मानना भी संभव नहीं है जिसके ग्रंथ धोखेबाजी के निम्नतम उदाहरणों से भरे पड़े हों।

[सूरा अल-अहज़ाब : 21]

जहाँ तक संदेश के अंतर्वस्तु की बात है, तो उसमें निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिएँ :

1- पूज्य सृष्टिकर्ता का परिचय :

सही धर्म माबूद का उस प्रकार वर्णन नहीं करता है, जो उसके प्रताप के लायक़ न हो या जो उसके सम्मान में कमी करता हो, जैसे कि यह कहा जाए कि वह पत्थर या जानवर का रूप धारण करता है, वह बच्चा पैदा करता है, वह माँ-बाप से पैदा हुआ है या सृष्टियों में से कोई उसके बराबर है।

“उस जैसी कोई चीज़ नहीं, वह ख़ूब सुनने वाला तथा देखने वाला है।” [52] "अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, वह जीवित तथा नित्य स्थायी है। उसे ऊँघ तथा निद्रा नहीं आती। आकाश और धरती में जो कुछ है, सब उसी का है। कौन है, जो उसके पास उसकी अनुमति के बिना अनुशंसा (सिफ़ारिश) कर सके? जो कुछ उनके समक्ष और जो कुछ उनसे ओझल है, वह सब जानता है। लोग उसके ज्ञान में से उतना ही जान सकते हैं, जितना वह चाहे। उसकी कुर्सी आकाश तथा धरती को समोए हुए है। उन दोनों की रक्षा उसे नहीं थकाती। वही सर्वोच्च, महान है।" [53]

[सूरा अल-शूरा :11] 2- अस्तित्व के मक़सद एवं उद्देश्य को स्पष्ट करना :

[सूरा अल-बक़रा : 255]

"मैंने जिन्नात और इन्सानों को मात्र इसी लिये पैदा किया है कि वे केवल मेरी इबादत करें।" [54] ''आप कह दे : मैं तो तुम्हारे जैसा ही एक मनुष्य हूँ। मेरी ओर प्रकाशना (वह़्य) की जाती है कि तुम्हारा पूज्य केवल एक ही पूज्य है। अतः जो कोई अपने पालनहार से मिलने की आशा रखता हो, उसके लिए आवश्यक है कि वह अच्छे कर्म करे और अपने पालनहार की इबादत में किसी को साझी न बनाए।" [55]

[सूरा अल-ज़ारियात : 56] 3- धार्मिक अवधारणाएँ मानवीय क्षमताओं की सीमा के भीतर हों।

[सूरा अल-कहफ़: 110]

"अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, तुम्हारे साथ तंगी नहीं चाहता।'' [56] ''अल्लाह किसी प्राणी पर भार नहीं डालता परंतु उसकी क्षमता के अनुसार। उसी के लिए है जो उसने (नेकी) कमाई और उसी पर है जो उसने (पाप) कमाया।।'' [57]

[सूरा अल-बक़रा : 185] "अल्लाह चाहता है कि तुम्हारा बोझ हल्का कर दे तथा मानव कमज़ोर पैदा किया गया है।'' [58]

[सूरा अल-बक़रा : 286] 4- प्रस्तुत की गई अवधारणाओं एवं सिद्धांतों के सही होने का तर्कसंगत प्रमाण प्रस्तुत करना।

[सूरा अल-निसा : 28]

संदेश को हमें इस बात के स्पष्ट और पर्याप्त तर्कसंगत सबूत देने चाहिएँ कि वह जो कुछ लेकर आया है, वह सच है।

पवित्र क़ुरआन केवल तर्कसंगत प्रमाणों और तर्कों को प्रस्तुत करने पर रुक नहीं गया है, बल्कि उसने बहुदेववादियों और नास्तिकों को चुनौती दी है कि वे जो कुछ कहते हैं, उसकी सच्चाई का सबूत पेश करें।

''तथा उन्होंने कहा : जन्नत में हरगिज़ नहीं जाएँगे, परंतु जो यहूदी होंगे या ईसाई। ये उनकी कामनाएँ ही हैं। (उनसे) कहो : लाओ अपने प्रमाण, यदि तुम सच्चे हो।" [59] “और जो (भी) अल्लाह के साथ किसी अन्य पूज्य को पुकारे, जिसका उसके पास कोई प्रमाण नहीं, तो उसका हिसाब केवल उसके पालनहार के पास है। निःसंदेह काफ़िर लोग सफल नहीं होंगे।” [60]

[सूरा अल-बक़रा : 111] ''(ऐ नबी!) उनसे कह दें : तुम देखो आकाशों और धरती में क्या कुछ है? तथा निशानियाँ और चेतावनियाँ उन लोगों के लिए किसी काम की नहीं हैं जो ईमान नहीं लाते।'' [61]

[सूरा अल-मोमिनून : 117] 5- रिसालत (संदेश) द्वारा प्रस्तुत धार्मिक अंतर्वस्तुओं के बीच कोई विरोधाभास नहीं होना चाहिए।

[सूरा यूनुस : 101]

"क्या वे क़ुरआन पर विचार नहीं करते? यदि वह (क़ुरआन) अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की ओर से होता, तो वे उसमें बहुत अधिक मतभेद और विरोधाभास पाते।" [62] ''उसी ने आप पर ये पुस्तक (क़ुरआन) उतारी है, जिसमें कुछ आयतें मुह़कम (सुदृढ़) हैं, जो पुस्तक का मूल आधार हैं, तथा कुछ दूसरी मुतशाबिह (संदिग्ध, जिनका एक से अधिक अर्थ हो सके) हैं। तो जिनके दिलों में कुटिलता है, वे उपद्रव की खोज तथा मनमाना अर्थ करने के लिए, संदिग्ध के पीछे पड़ जाते हैं। जबकि उनका वास्तविक अर्थ, अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता है। तथा जो ज्ञान में पक्के हैं, वे कहते हैं कि हम ईमान लाते हैं, सब हमारे पालनहार के पास से है, और बुध्दिमान लोग ही शिक्षा ग्रहण करते हैं।'' [63]

[सूरा अल-निसा : 82] 6- धार्मिक पाठ मानव प्रवृत्ति के नैतिक नियम से टकराता न हो।

[सूरा आल-ए-इमरान : 7]

''तो (ऐ नबी!) आप एकाग्र होकर अपने चेहरे को इस धर्म की ओर स्थापित करें। उस फ़ितरत पर जमे रहें, जिसपर[10] अल्लाह ने लोगों को पैदा किया है। अल्लाह की रचना में कोई बदलाव नहीं हो सकता। यही सीधा धर्म है, लेकिन अधिकतर लोग नहीं जानते।'' [64] और अल्लाह तो यह चाहता है कि तुम्हारी तौबा क़बूल करे तथा जो लोग इच्छाओं के पीछे पड़े हुए हैं, वे चाहते हैं कि तुम (हिदायत के मार्ग से) बहुत दूर हट[25] जाओ।'' [65]

[सूरा अल-रूम : 30] ''अल्लाह चाहता है कि तुम्हारे लिए स्पष्ट कर दे और तुम्हें उन लोगों के तरीक़ों का मार्गदर्शन करे जो तुमसे पहले हुए हैं और तुम्हारी तौबा क़बूल करे। अल्लाह सब कुछ जानने वाला, हिकमत वाला है। 7- धार्मिक अवधारणाएँ भौतिक विज्ञान की अवधारणाओं से टकराती न हों।

[सूरा अल-निसा : 26, 27]

"क्या अविश्वासी लोगों ने नहीं देखा कि आसमान और ज़मीन एक साथ मिले हुए थे, फिर हमने उनको अलग किया और हर जीवित चीज़ को हमने पानी से पैदा किया, क्या ये लोग फिर भी ईमान नहीं लाते?'' [66] 8- वह मानव जीवन की वास्तविकता से अलग न हो और सभ्यता की प्रगति के अनुरूप हो।

[सूरा अल-अंबिया : 30]

''(ऐ नबी!) इन (मिश्रणवादियों) से कहिए कि किसने अल्लाह की उस शोभा को हराम (वर्जित) किया है, जिसे उसने अपने सेवकों के लिए निकाला है? तथा स्वच्छ जीविकाओं को? आप कह दें : यह सांसारिक जीवन में उनके लिए (उचित) है, जो ईमान लाए तथा प्रलय के दिन उन्हीं के लिए विशेष है। इसी प्रकार, हम अपनी आयतों का सविस्तार वर्णन उनके लिए करते हैं, जो ज्ञान रखते हों।'' [67] 9- वह हर युग तथा स्थान के योग्य हो।

[सूरा अल-आराफ : 32]

"आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारे धर्म को सम्पूर्ण किया और तुमपर अपना वरदान (नेमत) पूरा कर दिया और तुम्हारे लिए इस्लाम के धर्म होने पर संतुष्ट हो गया।'' [68] 10- संदेश व्यापक एवं वैश्विक हो।

[सूरा अल-माइदा : 3]

''(हे नबी!) आप लोगों से कह दें कि हे मानव जाति के लोगो! मैं तुम सभी की ओर उस अल्लाह का रसूल हूँ, जिसके लिए आकाश तथा धरती का राज्य है। कोई वंदनीय (पूज्य) नहीं है, परन्तु वही, जो जीवन देता तथा मारता है। अतः अल्लाह पर ईमान लाओ और उसके उस उम्मी नबी पर, जो अल्लाह पर और उसकी सभी (आदि) पुस्तकों पर ईमान रखते हैं और उनका अनुसरण करो, ताकि तुम मार्गदर्शन पा जाओ।'' [69] आकाशीय धर्म एवं लोगों के रीति-रिवाजों में क्या अंतर है?