Applicable Translations සිංහල தமிழ் English Español ગુજરાતી عربي

इस्लाम के स्तंभ :

पैगंबर मुहम्मद द्वारा लाए गए इस्लाम के स्तंभ क्या हैं?

सृष्टिकर्ता के एक होने की गवाही और स्वीकृति देना और उसी की इबादत करना, साथ ही यह स्वीकार करना कि मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- उसके बन्दे एवं उसके रसूल हैं।

नमाज़ के द्वारा सारे संसारों के रब के साथ संबंध साधे रखना।

रोज़ा के माध्यम से एक व्यक्ति की इच्छा और आत्म-नियंत्रण को मजबूत करना और दूसरों के साथ दया और प्रेम की भावनाओं को विकसित करना।

ज़कात के रास्ते से फ़क़ीरों एवं मिस्कीनों पर एक तय प्रतिशत ख़र्च करना। यह एक इबादत है, जो इंसान को ख़र्च करने एवं देने के गुणों को अपनाने तथा कंजूसी एवं बखीली की भावनाओं से दूर रहने में मदद करती है।

मक्का के हज के माध्यम से कुछ विशेष इबादतों को अंजाम देकर, जो कि तमाम मोमिनों के लिए एक जैसी हैं, एक विशिष्ट समय और स्थान पर निर्माता के लिए निवृत्त होना। यह अलग-अलग मानवीय संबद्धताओं, संस्कृतियों, भाषाओं, दर्जों और रंगों की परवाह किए बिना एक साथ सृष्टिकर्ता की ओर आकर्षित होने का प्रतीक है।

मुसलमान नमाज़ क्यों पढ़ता है?

मुसलमान अपने रब के आज्ञापालन में नमाज़ पढ़ता है, जिसने उसे नमाज़ पढ़ने का आदेश दिया है एवं नमाज़ को इस्लाम के स्तंभों में से एक स्तंभ बनाया है।

एक मुसलमान रोज़ सुबह पांच बजे नमाज़ के लिए खड़ा होता है और उसके गैर-मुस्लिम दोस्त ठीक उसी समय सुबह व्यायाम के लिए निकलते हैं। उसके लिए, उसकी नमाज़ शारीरिक और आध्यात्मिक पोषण है, जबकि उसके गैर-मुस्लिम दोस्तों के लिए व्यायाम केवल शारीरिक भोजन है। नमाज़ दुआ से भिन्न है, जो अल्लाह से किसी ज़रूरत के लिए की जाती है। एक मुसलमान बिना शारीरिक हरकत जैसे रुकू और सजदा आदि किए किसी भी समय दुआ कर सकता है।

ध्यान दें कि हम अपने शरीर की कितनी देखभाल करते हैं, जबकि आत्मा भूख से बिलखती है और इसका परिणाम दुनिया के सबसे समृद्ध लोगों की अनगिनत आत्महत्याएँ हैं।

इबादत मस्तिष्क में ख़्याल के केंद्र में मौजूद स्वयं एवं आसपास के लोगों से संबंधित ख़्याल को दूर करने की ओर ले जाती है। उस समय इंसान बहुत उच्च अनुभव करता है। यह एक ऐसा एहसास है, जिसे एक व्यक्ति तब तक नहीं समझेगा, जब तक कि वह इसका अनुभव न कर ले।

इबादत मस्तिष्क में भावना के केंद्रों को हरकत देती है, इसलिए आस्था सैद्धांतिक जानकारी और रीति-रिवाजों से व्यक्तिपरक भावनात्मक अनुभवों में बदल जाती है। क्या पिता उसके पुत्र के यात्रा से लौटकर आने पर मौखिक स्वागत करने से संतुष्ट हो जाएगा? वह तब तक शांत नहीं होगा, जब तक उसे गले न लगा ले और चूम न ले। अक़्ल की विश्वासों और विचारों को एक महसूस रूप देने की एक प्राकृतिक इच्छा होती है। इबादतें इसी इच्छा को पूरा करती हैं। चुनांचे बंदगी और आज्ञाकारिता नमाज़ और रोज़ा आदि में प्रतीत होती है।

एंड्रयू न्यूबर्ग कहते हैं : ''शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य में सुधार लाने और शांति और आध्यात्मिक उच्चता की प्राप्ति में इबादत की एक बड़ी भूमिका होती है। साथ ही, सृष्टिकर्ता की ओर ध्यान देने से अधिक शांति और श्रेष्ठता प्राप्त होती है।" निदेशक आध्यात्मिक अध्ययन केंद्र, पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय, संयुक्त राज्य अमेरिका