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इस्लाम ने सूद को वर्जित क्यों किया है?

इस्लाम में धन का उद्देश्य व्यापार, वस्तुओं एवं सेवाओं का आदान-प्रदान, निर्माण और आबादकारी है। अतः जब हम कमाने के उद्देश्य से धन उधार देते हैं, तो हम धन को आदान-प्रदान और विकास का साधन बनाने के बजाय उसे ही साध्य बना लेते हैं।

ऋणों पर लगाया जाने वाला ब्याज या सूद उधारदाताओं के लिए एक प्रोत्साहन है, क्योंकि उनके नुक़सान की संभावना नहीं होती है। इस प्रकार उधारदाताओं द्वारा हर वर्ष अर्जित संचयी लाभ अमीर और गरीब के बीच की खाई को और चौड़ा करेगा। हाल के दशकों में, सरकारों और संस्थानों को इस चीज़ में बड़े पैमाने पर फंसाया गया है, जिसके कारण हमने कुछ देशों की आर्थिक व्यवस्था के चरमराने के कई उदाहरण देखे हैं। सूदखोरी के अंदर समाज में भ्रष्टाचार फैलाने की ऐसी ताक़त है, जो किसी दूसरे अपराध में नहीं है। [282]

अल्लाह तआला ने कहा है : ईसाई सिद्धांतों के आधार पर, थॉमस एक्विनास ने सूदखोरी या ब्याज के साथ उधार लेने की निंदा की है। चर्च, अपनी महान धार्मिक और सांसारिक भूमिका के कारण, दूसरी शताब्दी से धर्म गुरुओं के बीच इसे प्रतिबंधित करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध करने के बाद अपनी जनता के बीच सूदखोरी के निषेध को सामान्य बनाने में सफलता प्राप्त की। थॉमस एक्विनास के अनुसार, ब्याज पर रोक लगाने का औचित्य यह है कि ब्याज उधारकर्ता पर ऋणदाता की प्रतीक्षा की कीमत नहीं हो सकता है, अर्थात उस समय की कीमत जो उधारकर्ता लेता है, क्योंकि वे इस कार्य (उधार के लेन देन) को व्यापारिक लेन-देन के रूप में देखते हैं। अतीत में, दार्शनिक अरस्तू का मानना था कि पैसा विनिमय का एक साधन है न कि लाभ एकत्र करने का रास्ता। जहाँ तक प्लेटो की बात है, तो वह लाभ को शोषण के रूप में देखते थे, फिर भी अमीरों ने समाज के गरीब सदस्यों पर इसको आज़माया (उनसे लाभ और ब्याज लिया)। यूनानियों के समय में सूदी लेन-देन अत्यधिक प्रचलित था। यह क़र्जदाता का अधिकार था कि वह कर्जदार को गुलाम बाजार में बेच दे, अगर वह अपने कर्ज का भुगतान करने में असमर्थ हो। रोमनों के यहाँ भी स्थिति अलग नहीं थी। उल्लेखनीय है कि यह निषेध धार्मिक प्रभावों के अधीन नहीं था, क्योंकि यह ईसाई धर्म के आगमन से तीन शताब्दियों पहले हुआ था। ज्ञात रहे कि बाइबल ने अपने अनुयायियों को सूदख़ोरी का मामला करने से मना किया था और ऐसा ही तौरात ने पहले किया था।

''ऐ ईमान वालो! कई-कई गुणा करके ब्याज[73] न खाओ। तथा अल्लाह से डरो, ताकि तुम सफल हो।'' [283] [सूरा आल-ए-इमरान : 130]

''और तुम ब्याज पर जो (उधार) देते हो, ताकि वह लोगों के धनों में मिलकर अधिक हो जाए, तो वह अल्लाह के यहाँ अधिक नहीं होता। तथा तुम अल्लाह का चेहरा चाहते हुए जो कुछ ज़कात से देते हो, तो वही लोग कई गुना बढ़ाने वाले हैं।'' [284] [सूरा अल-रूम : 39]

ओल्ड टैस्टमैंट ने भी सूदखोरी को हराम किया था, जैसा कि हम Book of Leviticus में अनगिनत उदाहरण पाते हैं। उदाहरण स्वरूप :

''और यदि तुम्हारा भाई गरीब हो और उसका हाथ तंग हो जाए, तो एक अजनबी हो या देशवासी, उसकी मदद करो, ताकि वह तुम्हारे साथ जी सके। न उससे कोई ब्याज लो और न लाभ। अपने माबूद से डरो, ताकि तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ जी सके। अपनी चाँदी को सूद पर मत दो और न अपने खाने को सूद पर दो।'' [285]

जैसा कि मैंने पूर्व में उल्लेख किया, यह मालूम है कि नबी ईसा -अलैहिस्सलाम- की शरीयत और मूसा -अलैहिस्सलाम- की शरीयत एक ही है, जैसा कि ईसा की ज़ुबानी न्यू टेस्टामेंट में आया है। [Book of Leviticus 25:35-37]

''यह मत सोचो कि मैं पिछले नबियों की शरीयत या विधान को तोड़ने आया हूँ। मैं उनको तोड़ने नहीं, बल्कि पूरा करने आया हूँ। मैं तुमसे सच कहता हूँ। धरती एवं आकाश के बाकी रहने तक विधान का एक शब्द या एक बि्ंदू कम न होगा, यहाँ तक कि पूरा हो जाए। जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़ेगा और जो मनुष्यों को ऐसा सिखाएगा, वह स्वर्ग के राज्य में सबसे छोटा कहलाएगा। परन्तु जो कोई अमल करेगा और सिखाएगा, वह स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा।" [286] [मत्ती का सुसमाचार 5:17-19]

इस आधार पर, ईसाई धर्म में सूद वर्जित होगा, जैसा कि यह यहूदी धर्म में वर्जित था।

जैसा कि क़ुरआन में आया है :

''चुनाँचे यहूदी बन जाने वालों के बड़े अत्याचार ही के कारण हमने उनपर कई पाक चीज़ें हराम कर दीं, जो उनके लिए हलाल की गई थीं तथा उनके अल्लाह के रास्ते से बहुत अधिक रोकने का कारण। तथा उनके ब्याज लेने के कारण, जबकि निश्चय उन्हें इससे रोका गया था और उनके लोगों का धन अवैध रूप से खाने के कारण। तथा हमने उनमें से काफ़िरों के लिए दर्दनाक यातना तैयार कर रखी है।'' [287] [सूरा अल-निसा : 160,161]

इस्लाम शराब पीने से क्यों मना करता है?

अल्लाह तआला ने अक़्ल देकर मनुष्य को अन्य सभी प्राणियों से अलग किया है और हमपर उन चीज़ों को हराम किया है, जो हमारी अक़्ल या शरीर को हानि पहुँचाएँ। इसलिए उसने हमपर हर नशा लाने वाली चीज़ को वर्जित कर दिया है, क्योंकि यह बुद्धि को भ्रष्ट कर देती है, उसे नुक़सान पहुँचाती है और उसे हर तरह के भ्रष्टाचार की ओर ले जाती है। शराब पीने वाला व्यक्ति हत्या कर सकता है, व्यभिचार कर सकता है, चोरी कर सकता है और इनके अलावा दूसरे बड़े अपराधों को भी अंजाम दे सकता है।

अल्लाह तआला का फ़रमान है :

“ऐ ईमान वालो! बात यही है कि शराब तथा जुआ और थान (मूर्तियों के स्थान) तथा फ़ाल निकालने के पाँसे के तीर यह सब गंदी बातें, शैतानी काम हैं, इनसे बिल्कुल अलग रहो, ताकि तुम सफल हो जाओ।” [288] [सूरा अल-माइदा : 90]

शराब हर उस चीज़ का नाम है, जिसमें नशा हो। चाहे उसका नाम या शक्ल कुछ भी हो। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फरमाया है : “हर नशा लाने वाली चीज़ शराब है और हर नशा लाने वाली चीज़ हराम है।” [289] इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

इसका निषेध व्यक्ति और समाज पर इसके बड़े नुकसानों के आधार पर आया है।

ईसाई धर्म और यहूदी धर्म में भी शराब की मनाही है, लेकिन आज ज्यादातर लोग इसे लागू नहीं करते हैं।

"शराब का ठट्ठा उड़ाया जाता है, मादक अश्लील है, और जो कोई नशे के कारण लड़खड़ाता है, वह बुद्धिमान नहीं।" [290] [नीतिवचन, अध्याय 20, पद्य 1]

"और मद पीकर मतवाले न होना, जिसमें लुच्चापन होता है।" [291] [इफिसियों, अध्याय 5, पद 18]

प्रसिद्ध चिकित्सा पत्रिका, द लांसेट ने 2010 में व्यक्ति और समाज के लिए सबसे विनाशकारी दवाओं (drugs) पर एक शोध प्रकाशित किया था। अध्ययन शराब, हेरोइन, तंबाकू और अन्य सहित 20 दवाओं पर आधारित था। 16 कसौटियों के आधार पर इनका मूल्यांकन किया गया था, जिनमें व्यक्ति पर नुक़सान से संबंधित नौ मानदंड और दूसरों को नुक़सान पहुंचाने से संबंधित सात मानदंड शामिल थे और मूल्यांकन को नम्बर सौ में से दिए गए थे।

इसका परिणाम यह था कि यदि हम व्यक्तिगत नुक़सान और दूसरों को होने वाले नुक़सान दोनों पर एक साथ विचार करें, तो अल्कोहल सबसे हानिकारक दवा है और पहले स्थान पर है।

एक अन्य अध्ययन ने शराब की सुरक्षित खपत का मध्यमान बताते हुए कहा है :

"उसके सेवन करने के परिणाम स्वरूप होने वाली हानियों एवं बीमारियों के कारण होने वाले जानी नुक़सान से बचने के लिए अल्कोहल का सुरक्षित सेवन शून्य है। इस बात का ऐलान शोधकर्ताओं ने खुद मशहूर वैज्ञानिक पत्रिका द लैंसेट की वेबसाइट पर एक रिपोर्ट में किया है।" यह अध्ययन इस विषय पर अब तक का सबसे बड़ा डेटा विश्लेषण अध्ययन था। इसमें 1990 से 2016 के बीच के दुनिया भर के 28 मिलियन लोग शामिल थे, जो 195 देशों का प्रतिनिधित्व करते थे। ताकि (694 डेटा स्रोतों का उपयोग करके) शराब की खपत की व्यापकता और खपत मात्रा का अनुमान लगाया जा सके। साथ ही उस खपत का शराब से होने वाले नुकसान और स्वास्थ्य जोखिमों से क्या संबंध है (जो (नुकसान) बीमारी से पहले और बाद के 592 अध्ययनों से निकाले गए थे)। नतीजे बताते हैं कि शराब दुनिया भर में सालाना 2.8 मिलियन लोगों की मौत का कारण बनती है।

इस संदर्भ में, शोधकर्ताओं ने बाजार में शराब की उपस्थिति और इसके विज्ञापन को सीमित करने के लिए उसपर कर लगाने के उपायों को शुरू करने की प्रस्तावना के रूप में सिफारिश की, जो भविष्य में इसे बाजार से प्रतिबंधित करने की ओर पहला क़दम होगा। सच कहा है अल्लाह तआला ने, जब उसने कहा है :

“क्या अल्लाह समस्त हाकिमों का हाकिम नहीं है?” [सूरा अल-तीन : 8]