पशु की आत्मा और मानव आत्मा के बीच एक बड़ा अंतर है। जानवर की आत्मा शरीर को हरकत देने वाली शक्ति है। जब यह मृत्यु के कारण उसके शरीर से अलग हो जाती है, तो वह एक निर्जीव लाश बन जाता है। यह भी दरअसल जीवन का एक प्रकार है। पेड़-पौधों में भी एक प्रकार का जीवन होता है, जिसे आत्मा नहीं कहा जाता है। बल्कि यह एक ऐसा जीवन है, जो पानी के माध्यम से उनके अंगों में प्रवेश करता है। फिर जब वह उससे जुदा होता है, तो वह मुरझाकर गिर जाता है।
अल्लाह तआला ने कहा है :
''और हमने पानी से हर जीवित चीज़ बनाई है। क्या वे ईमान नहीं लाते?'' [276] [सूरा अल-अंबिया : 30]
लेकिन यह मानव आत्मा की तरह नहीं है, जिस मानव आत्मा को आदर और सम्मान देने के उद्देश्य से उसकी निस्बत अल्लाह की ओर की गई है। इसकी हक़ीक़त (वास्तविकता) को केवल अल्लाह ही जानता है और यह केवल मनुष्य के लिए विशिष्ट है। मानवीय आत्मा अल्लाह का एक आदेश है और मनुष्य के लिए इसके सार को समझना आवश्यक नहीं है। यह शरीर को हरकत देने वाली शक्ति के अलावा इसमें समझने की शक्ति (अक़ल), बौद्धिक शक्ति, ज्ञान और ईमान भी मौजूद है और यही चीज़ इसको जानवरों की आत्मा से अलग करती है।
यह अल्लाह की अपनी सृष्टि पर रहमत और दया है कि उसने हमें स्वच्छ चीज़ों को खाने का आदेश दिया है एवं बुरी चीजों के खाने से मना किया है।
अल्लाह तआला ने कहा है :
''जो उस रसूल का अनुसरण करेंगे, जो उम्मी (अनपढ़) नबी हैं, जिन (के आगमन) का उल्लेख वे अपने पास तौरेत तथा इंजील में पाते हैं; जो उन्हें सदाचार का आदेश देंगे और दुराचार से रोकेंगे, उनके लिए स्वच्छ चीज़ों को हलाल (वैध) तथा मलिन चीज़ों को हराम (अवैध) करेंगे, उनसे उनके बोझ उतार देंगे तथा उन बंधनों को खोल देंगे, जिनमें वे जकड़े हुए होंगे। अतः जो लोग आप पर ईमान लाए, आपका समर्थन किया, आपकी सहायता की तथा उस प्रकाश (क़ुरआन) का अनुसरण किया, जो आपके साथ उतारा गया, तो वही सफल होंगे।'' [277] [सूरा आल-ए-इमरान, आयत संख्या :157]
इस्लाम ग्रहण करने वाले कुछ लोगों बताया है कि उनके इस्लाम ग्रहण करने का कारण सूअर था।
क्योंकि उनको पहले से पता था कि यह एक बहुत ही गंदा जानवर है और बहुत सारे शारीरिक बीमारियों का कारण बनता है। इसी वजह से इसे खाना पसंद नहीं करते थे। उनका मानना था कि मुसलमान सूअर का मांस केवल इसलिए नहीं खाते हैं कि यह उनकी किताब में वर्जित है और वे उसे पवित्र मानते और उसकी इबादत करते हैं। लेकिन बाद में जब उनको मालूम हुआ कि सूअर का मांस मुसलमानों के लिए इसलिए हराम है कि यह एक गंदा जानवर है और इसका मांस स्वस्थ के लिए हानिकारक होता है, तो उन लोगों ने इस धर्म की महानता को जाना।
अल्लाह तआला का फ़रमान है :
(अल्लाह) ने ''तुमपर मुर्दार तथा (बहता) रक्त और सूअर का माँस तथा जिसपर अल्लाह के सिवा किसी और का नाम पुकारा गया हो, उसे हराम कर दिया है। फिर भी जो विवश हो जाए, जबकि वह नियम न तोड़ रहा हो और आवश्यक्ता की सीमा का उल्लंघन न कर रहा हो, तो उसपर कोई दोष नहीं। अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।" [278] [सूरा अल-बक़रा : 173]
ओल्ड टेस्टामेंट में भी सूअर के माँस को मांस को हराम कहा गया है।
''सूअर, क्योंकि उसके खुर दो खुरों में बँटे होते हैं, लेकिन वह जुगाली नहीं करता, वह तुम्हारे लिए अशुद्ध है। उसके मांस में से कुछ न खाना और न उसके शरीर को छूना। वह तुम्हारे लिए अशुद्ध है।'' [279] [Book of Leviticus 11:7-8]
''सूअर, क्योंकि उसके खुर दो खुरों में बँटे होते हैं, लेकिन वह जुगाली नहीं करता, वह तुम्हारे लिए अशुद्ध है। उसके मांस में से कुछ न खाना और न उसके शरीर को छूना।'' [280] [Book of Deuteronomy 8:14]
यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि नबी ईसा -अलैहिस्सलाम- की शरीयत और मूसा -अलैहिस्सलाम- की शरीयत एक है, जैसा कि ईसा की ज़ुबानी न्यू टेस्टामेंट में आया है।
''यह मत सोचो कि मैं पिछले नबियों की शरीयत या विधान को तोड़ने आया हूँ। मैं उनको तोड़ने नहीं, बल्कि पूरा करने आया हूँ। मैं तुमसे सच कहता हूँ। धरती एवं आकाश के बाकी रहने तक विधान का एक शब्द या एक बि्ंदू कम न होगा, यहाँ तक कि पूरा हो जाए। जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़ेगा और जो मनुष्यों को ऐसा सिखाएगा, वह स्वर्ग के राज्य में सबसे छोटा कहलाएगा। परन्तु जो कोई अमल करेगा और सिखाएगा, वह स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा।" [281] [मत्ती रचित इंजील 5 :17-19]
इस आधार पर, ईसाई धर्म में भी सूअर का मांस खाना वर्जित समझा जाएगा, जैसा कि यह यहूदी धर्म में वर्जित है।