Applicable Translations English Español ગુજરાતી සිංහල தமிழ் 中文 Русский عربي

इस्लामी सभ्यता की विशेषताएँ :

इस्लामी सभ्यता की विशेषताएँ क्या हैं?

इस्लामी सभ्यता ने अपने सृष्टिकर्ता के साथ अच्छा व्यवहार किया है और सृष्टिकर्ता और उसकी सृष्टि के बीच के संबंध को सही जगह पर रखा है। जबकि अन्य मानव सभ्यताओं ने अल्लाह के साथ अच्छा मामला नहीं किया है। उन्होंने उसका इंकार किया है, ईमान एवं इबादत में दूसरे प्राणियों को उसके साथ साझी बनाया है और उसे ऐसे स्थान पर रखा है, जो उसकी शान एवं सामर्थ्य के अनुरूप नहीं है।

एक सच्चा मुसलमान सभ्यता एवं संस्कृति के बीच मिश्रण नहीं करता है। वह विचारों और विज्ञानों से डील करने के तरीक़े को निर्धारित करने एवं उनके बीच अंतर करने में बीच का रास्ता चुनता है।

सांस्कृतिक तत्व : विश्वास संबंधी, वैचारिक तथा बौद्धिक बातों और व्यवहारिक और नैतिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है।

सभ्यता संबंधी तत्व : यह वैज्ञानिक उपलब्धियों, भौतिक खोजों और औद्योगिक आविष्कारों का प्रतिनिधित्व करता है।

मुसलमान इन विज्ञानों और आविष्कारों को अपने ईमान और व्यवहार संबंधी अवधारणाओं के दायरे में रहते हुए अपनाता है।

ग्रीक संस्कृति अल्लाह के अस्तित्व पर ईमान लाई, लेकिन उसने उसके एक होने से इंकार किया और उसके बारे में बताया कि वह न लाभ पहुँचा सकता है और न हानि करता है।

रोमानी संस्कृति ने आरंभ में सृष्टिकर्ता का इंकार किया और ईसाई धर्म अपनाने के बाद सृष्टिकर्ता का साझी ठहराया। चुनांचे उसकी मान्यताओं में बुतपरस्ती के तत्व, जैसे बुतों एवं शक्तिशाली वस्तुओं की इबादत आदि चीज़ें प्रवेश करती गईं।

इस्लाम से पहले फारसी संस्कृति ने अल्लाह का इंकार किया, उसको छोड़ सूरज की इबादत की, आग को सजदा किया एवं उसको पवित्र जाना।

हिन्दू संस्कृति ने सृष्टिकर्ता की इबादत छोड़कर सृष्टि की पूजा शुरू कर दी, जो पवित्र त्रय का देहधारण करती है, जो तीन दैवीय रूपों से मिलकर बना है : भगवान "ब्रह्मा" सृष्टिकर्ता के रूप में, भगवान "विष्णु" रक्षक के रूप में और भगवान "शिव" विध्वंसक के रूप में।

बौद्ध सभ्यता ने संसार की रचना करने वाले को नकारा और बुद्ध को अपना देवता बना लिया।

साबियों ने, जो अह्ले किताब में से थे, अपने रब का इनकार किया। उनके कुछ मुस्लिम एकेश्वरवादी गिरोहों -जिनका क़ुरआन ने उल्लेख किया है- को छोड़कर सभी ने ग्रहों और सितारों की पूजा की।

अखेनातेन के शासनकाल के दौरान फैरोनिक सभ्यता एकेश्वरवाद एवं पूज्य की पवित्रता के उच्च स्तर पर पहुँची, मगर उसमें भी पूज्य के भौतिक शरीर होने का दावा करने एवं उसे उसी के कुछ प्राणियों, जैसे सूर्य आदि का सदृश बनाने जैसी बातें पाई जाती थीं, जिन्हें पूज्य के प्रतीक माना जाता था। अल्लाह का इंकार उस समय शिखर पर पहुँच गया, जब मूसा -अलैहिस्सलाम- के समय में फिरऔन ने अल्लाह के अतिरिक्त पूज्य होने का दावा किया और अपने आपको पहला क़ानून साज़ घोषित कर दिया।

अरब सभ्यता ने सृष्टिकर्ता की इबादत को छोड़कर बुतों की इबादत शुरू कर दी।

ईसाई सभ्यता ने अल्लाह के पूर्ण रूप से एक होने का इंकार किया, उसके साथ ईसा मसीह एवं उनकी माँ मरयम को साझी ठहराया और ट्रिनिटी की आस्था को अपनाया। अर्थात इस बात पर ईमान रखा कि अल्लाह तीन-तीन सत्ताओं में है (बाप, बेटा और पवित्र रूह)।

यहूदी सभ्यता ने अपने सृष्टिकर्ता का इंकार किया और अपने लिए एक विशेष पूज्य को चुना, जिसे उसने अपनी जाति का माबूद बनाया, बछड़े की इबादत की और अपनी किताबों में माबूद को मानव विशेषताओं से विशेषित किया, जो उसके योग्य नहीं हैं।

पिछली सभ्यताएं कमज़ोर हुईं और यहूदी एवं ईसाई सभ्यताएं दो गैर-धार्मिक सभ्यताओं में बदल गईं। अर्थात् पूंजीवाद और साम्यवाद। यदि अल्लाह तथा जीवन के बारे में उनकी धारणाओं और विचारों पर गौर किया जाए तो स्पष्ट होगा कि वे नागरिक, वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति में शिखर पर पहुँचे हुए होने के बावजूद पिछड़े, अविकसित, क्रूर और अनैतिक हैं। दरअसल नागरिक, वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति सभ्यताओं के विकसित होने का मानक नहीं है।

सही सभ्यतागत प्रगति की कसौटी इसका तर्कसंगत प्रमाणों और अल्लाह, मनुष्य, ब्रह्मांड और जीवन के संबंध में सही विचार पर आधारित होना है। सही और उन्नत सभ्यता वह है जो अल्लाह और उसके प्राणियों के साथ उसके संबंध, इनसान के अस्तित्व के स्रोत, उसके परिणाम के ज्ञान के बारे में सही अवधारणाओं की ओर ले जाती है और इस संबंध को सही स्थान पर रखती है। इस तरह हम पाते हैं कि इस्लामी सभ्यता सभी सभ्यताओं के बीच अकेली विकसित सभ्यता है। क्योंकि इसने ज़रूरी संतुलन को बाक़ी रखा है। पुस्तक ''इसाअह अल-रासमालिय्यह व अल-शुयूईय्यह इला अल्लाह'', प्रो. डॉ. गाजी इनाया।

क्या यह विरोधाभास नहीं है कि इस्लाम धर्म इतना तार्किक है और मुसलमानों की स्थिति इतनी कुव्यवस्था की शिकार है?

धर्म अच्छे आचरण और बुरे कर्मों से बचने का आह्वान करता है। इस प्रकार, कुछ मुसलमानों का बुरा व्यवहार उनकी सांस्कृतिक आदतों या उनके धर्म की अज्ञानता और सच्चे धर्म से उनकी दूरी के कारण होता है।

इसलिए कोई विरोधाभास नहीं है। क्या लक्ज़री कार चालक का सही ड्राइविंग के नियमों से अज्ञानता के कारण किसी भयानक दुर्घटना का शिकार हो जाना, उस कार की श्रेष्ठता की वास्तविकता का खंडन करता है?